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संस्कृत छाया
उत्पत्तिः कुत्र मम च्युतस्येतो भविष्यति भगवन् ? । ततो जिनेन भणितं भरते च हस्तिनापुरे ।। ५२ ।। य आस्ते पुत्रार्थी पौषधशालायां पौषधे स्थितः । श्री अमरकेतुराजा तस्य त्वं भविष्यसि पुत्र इति ।। ५३ ।। युग्मम् गुजराती अनुवाद
५२-५३. हे भगवन्! अहींथी च्यवेला एवा मारो जन्म क्यां थशे? त्यारे भगवाने जणाव्यु. 'भरतक्षेत्रमां हस्तिनापुर नगरमां पुत्रनो अर्थी पौषधशालामां पौषधमां रहेलो जे श्री अमरकेतु राजा छे, तेनो तुं पुत्र थईश. हिन्दी अनुवाद
हे भगवन्! यहाँ से होने पर मेरा जन्म कहाँ होगा ? तब भगवान ने बताया कि भरतक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर में पुत्रार्थी पौषधशाला के पौषध में रह रहे के पुत्र के रूप में तुम्हारा जन्म होगा।
अ
गाहा
तव्वयणं सोऊणं समागओ राय! तुह सभीवम्मि ।
तामाकुणसु किलेसं अहयं होहामि तुह पुत्तो ।। ५४ ।।
संस्कृत छाया
तद्वचनं श्रुत्वा समागतो राजन् ! तव समीपे ।
तस्माद् मा कुरु क्लेशमहं भविष्यामि तव पुत्रः ।। ५४ ।।
गुजराती अनुवाद
५४. परमात्मानुं वचन सांभलीने हे राजन्! तमारी पासे आव्यो छु तेथी क्लेश न करो, हुं तमारो पुत्र थईश !
हिन्दी अनुवाद
परमात्मा का वचन सुनकर हे राजन् ! मैं तुम्हारे पास आया हूँ। इसलिए तुम क्लेश मत करो। मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा।
गाहा
गेहसु कुंडल - जुयलं नरिंद! एवं तओ उ देवीए । जीए इच्छसि पुत्तं दायव्वं तीइ आभरणं ।। ५५ ।।