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मुद्राराक्षस में प्रयुक्त प्राकृतों का सार्थक्य : 19 अर्थात् ऐसा कौन वीर है जो सिंह के अनुशासन का तिरस्कार कर जम्हाई लेते समय उसके खुले हुए मुख से उसकी दाढ़ी उखाड़ लेने का साहस करेगा जो तत्काल ही हाथी के वध करने के कारण उसके रक्त से रक्तिम शोभावाली और सायंकाल में
अरुण वर्ण के चन्द्रमा की कला के समान देदीप्यमान हो रहा है। मुद्राराक्षस में नाटकीय औचित्य की दृष्टि से प्राय: काव्यकल्पनाओं का अभाव है। विशाखदत्त की नाट्य-कला की तुलना भवभूति एवं कालिदास की नाट्यकला से करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें चमत्कारपूर्ण उक्ति और काव्यमय भावाभिव्यंजना का अभाव है। विशाखदत्त ने लोकोक्तियों का युक्तिसंगत प्रयोग किया है। उदाहारणार्थ - अनर्थों की बहुलता के लिए समानार्थी संस्कृत कहावत- 'अयमपरो गण्डस्योपरि स्फोटः'। पांचवें अंक का यह प्रसंग जीवसिद्धि के प्रति विश्वासघात स्पष्ट होने पर राक्षस का उद्गार है।' काव्य कला की दृष्टि से यह नाटक महत्त्वपूर्ण नहीं, चरित्र की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस नाटक में पुरुष पात्रों की प्रधानता तथा स्त्री पात्रों का अभाव है। इस नाटक में सात अंक हैं और २३ पुरुष पात्र तथा चार स्त्री पात्र हैं। विशाखदत्त कौटिल्य के अर्थशास्त्र, शुक्रनीति एवं अन्य नीतिशास्त्रों में वर्णित विज्ञान से पूर्ण परिचित थे। अर्थशास्त्र के पारिभाषिक शब्दों का नाटककार ने अपनी रचना में प्रयोग किया है। समकालीन धर्मों का भी विशाखदत्त को ज्ञान था। बौद्धधर्म के सिद्धान्तों का प्रतिपादन भी विशाखदत्त ने क्षपणक से करवाया है। यथा -
अलिहन्ताणं पणमामो जे दे गम्भीलदाए बुद्धिए। लोउत्तलेहिं लोए सिद्धिं मग्गेहिं मग्गन्ति ।। सासणमलिहन्ताणंप्पडिवज्जह मोहबावेहिज्जाणं।
जे पढममेत्तकडुअं पच्छा पत्थं उबदिसन्ति।।' भारत की प्राचीन भाषाओं में प्राकृत भाषाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लोक भाषाओं के रूप में प्रारम्भ में इनकी प्रतिष्ठा रही और क्रमशः ये साहित्य एवं चिन्तन की भाषाएँ बनीं। प्राकृत प्राचीन भारत के जीवन और साहित्यिक जगत् की आधारभूत भाषा है। जनभाषा से विकसित होने के कारण और जन-सामान्य की स्वाभाविक (प्राकृतिक) भाषा होने के कारण इसे प्राकृत भाषा कहा गया है। प्राचीन विद्वान् नमिसाधु के अनुसार 'प्राकृत' शब्द का अर्थ है- व्याकरण आदि संस्कारों से रहित लोगों का स्वाभाविक वचन-व्यापार। उससे उत्पन्न अथवा वही वचन व्यापार प्राकृत है। प्राक् कृत पद से प्राकृत शब्द बना है, जिसका अर्थ है पहले