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90 : Sramana, Vol 66, No. 2, April-June 2015 In this workshop an examination was held followed by a viva-voce. On the basis of the final result three participants were awarded certificate of merit with prizes. Valedictory function of the workshop was held on 291h May, 2015. Prof. Prabhunath Dwivedi Former Head Deptt. of Sanskrit, MGKV Varanasi, Presided over the session. Prof. Yadunath Prasad Dubey, Vicc-chancellor, Sampurnanand Sanskrit University, Varanasi, was the Chief Guest and Prof. Deenanath Sharma, Gujarat University, Ahmedabad, was the Guest of Honour for this session. The Workshop was completed successfully under the Directorship of Dr. S. P. Pandey, Joint Director, Parshwanath Vidyapeeth, Varanasi and Dr. Rahul Kumar Singh, co-ordinator of the workshop.
ओटावा यूनिवर्सिटी, कनाडा के छात्रों/अध्यापकों का जैन विद्या प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत पार्श्वनाथ विद्यापीठ में आगमन पार्श्वनाथ विद्यापीठ, करौंदी में दिनांक २ जून २०१५ को ओटावा यूनिवर्सिटी, कनाडा से जैन विद्या प्रशिक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत पधारे १४ छात्रों के लिए दो विशेष व्याख्यान पार्श्वनाथ विद्यापीठ एवं इग्नाइटिंग माइन्ड फाउण्डेशन, मुम्बई के संयुक्त तत्त्वावधान में
आयोजित किये गये। इस विशेष प्रशिक्षुदल का नेतृत्व कर रही थीं- प्रोफेसर एने वलेली, डिपार्टमेण्ट आफ क्लासिकल एण्ड रिलीजियस स्टडीज, यूनिवर्सिटी आफ ओटावा तथा डॉ. कामिनी गोगरी, यूनिवर्सिटी आफ मुम्बई। प्रथम व्याख्यान प्रो० मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी, इमरेटस प्रोफेसर, कला संकाय एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, इतिहास-कला विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का जैन कला एवं प्रतिमा विज्ञान पर हुआ। कला को परिभाषित करते हुए प्रो० तिवारी ने कहा कि कला साहित्य की वैयक्तिक रचना है। कला पूरी संस्कृति की एक विस्तृत मौन अभिव्यक्ति है। किसी भी काल की कला वर्तमान में भी अपरिवर्तित रूप में ही प्राप्त होती है। इस दृष्टि से जैन कला के आधार पर पूरी जैन संस्कृति, दर्शन एवं धर्म को भलीभांति समझा जा सकता है। प्रो० तिवारी ने बताया कि जैन तीर्थंकर की मूर्तियाँ ध्यानमुद्रा एवं कायोत्सर्ग मुद्रा में ही पायी जाती हैं। ध्यानमुद्रा चिन्तन के शीर्ष बिन्दु को व्यक्त करती है और कायोत्सर्ग मुद्रा जैन कला का विलक्षण वैशिष्ट्य है। उपसर्ग में भी जैन तीर्थंकर कायोत्सर्ग मद्रा का परित्याग नहीं करते। उन्होंने बताया कि जैन तीर्थंकरों के साथ वृक्षों का उल्लेख उनके पर्यावरण के प्रति प्रेम का द्योतक है। इस क्रम में उन्होंने खजुराहो तथा