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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
अत्यशन, लध्वशन, समशन और अध्यशन नहीं करना चाहिये। प्रत्युत बल और जीवन प्रदान करने वाला उचित भोजन करना चाहिये। अत्यशन--- भूख से अधिक खाना लध्वशन- भूख से कम खाना समशन - पथ्य और अपथ्य दोनों खाना अध्यशन- खाए हुए भोजन पर पुन: भोजन करना। इन चारों अशन का त्याग करना अभीष्ट रहता है (श्लोक ३४५, पृ० ५१३)।
इसके पश्चात् सज्जन नामक वैद्य द्वारा यशोधर महाराज को उपदेश दिया गया कि भोजन के अनन्तर मनुष्य को कौन से कार्य नहीं करने चाहिये। यथा
कामकोपातपायासयानवाहनवह्नयः।
भोजनानन्तरं सेव्या न जातु हितमिच्छता।। ३७४ ।। अर्थात् स्वास्थ्य-हित की इच्छा रखने वाले मनुष्य को भोजन करने के उपरान्त कभी भी स्त्री सेवन, क्रोध, धूपसेवन, परिश्रम वाले कार्य, शीघ्रगमन, घोड़े गाड़ी आदि की सवारी और आग तापना ये कार्य नहीं करना चाहिये।
आयुर्वेदशास्त्र में भी इन्हीं कार्यों का निषेध किया गया है। आचार्य वाग्भट ने भोजन के बाद जिन कार्यों को करने का निषेध किया है, वे निम्न हैं -
पानं त्यजेयु सर्वश्च सर्वश्च भाष्याध्वशयनं त्यजेत्। पीत्वा, भुक्त्वाऽऽतपं वहिं यानं प्लवनवाहनम्।।
(अष्टाङ्गहृदय, सूत्रस्थान, ८/५४) अर्थात् सभी (स्वस्थ या रोगी) मनुष्य अनुपान पीकर बोलना, मुसाफिरी और शयन करना छोड़ देवें। भोजन करके (भोजन के बाद) धूपसेवन, अग्नि का तापना, शीघ्रगमन, तैरना और वाहन की सवारी करना छोड़ देवें।
स्वास्थ्य हित की दृष्टि से भोजन के पश्चात् उपर्युक्त सावधानी का निर्देश करते हुए श्रीमत्सोमदेव ने मनुष्य के वैयक्तिक स्वास्थ्य के प्रति जिस सजगता का परिचय दिया है वह उनके मानसिक एवं बौद्धिक चिन्तन का परिणाम है, क्योंकि भोजन में
और भोजन के पश्चात् यदि अपेक्षित सावधानी नहीं बरती जाती है और निरन्तर अपथ्य का आचरण किया जाता है, तो कालान्तर में गम्भीर विकारोत्पत्ति रूप परिणाम भुगतना पड़ सकता है, जो स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं होने से अपाय कारक है।
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