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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
बौद्ध परम्परा के अन्तर्गत गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण स्थल तीर्थ के रूप में बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए प्रतिस्थापित हैं, महापरिनिर्वाणसूत्र के अनुसार गौतम बुद्ध ने अपने जीवन से सम्बन्धित चार महत्त्वपूर्ण स्थानों की यात्रा को अपने अनुयायियों के लिए अत्यन्त पुण्यकारी बताया है। इन चार स्थलों में क्रमश: लुम्बिनी-बद्ध के जन्म-बोधगया-उनके बोधि-प्राप्ति सारनाथ-बुद्ध द्वारा दिये गये प्रथम धर्मोपदेश और कुशीनगर उनके परिनिर्वाण से सम्बन्धित हैं, इसके अतिरिक्त श्रावस्ती, राजगिर, वैशाली और सांकाश्य जैसे स्थल भी बुद्ध के जीवन की विभिन्न घटनाओं से सम्बन्धित होने के कारण ख्याति प्राप्त हैं।
जैन धर्म के अनुसार जिसके द्वारा पार हुआ जाता है, वह तीर्थ है। तात्पर्य यह है कि जैन परम्परा में वे सभी माध्यम तीर्थ हैं, जो आध्यात्मिक सत्ता की उपलब्धि सुनिश्चित करते हैं। जैन धर्म के अन्तर्गत तीर्थ शब्द के लाक्षणिक और आध्यात्मिक अर्थ की अलग-अलग मान्यता है। लाक्षणिक दृष्टि से तीर्थ ही मोक्ष का मार्ग है। आध्यात्मिक दृष्टि से तीर्थ वह स्थल है, जो आध्यात्मिक शक्तियों के प्रतिस्थापक केन्द्र-बिन्दु को इंगित करता है। जैनधर्म के अन्तर्गत लौकिक तीर्थस्थलों की अरे.. आध्यात्मिक तीर्थ अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। वस्तुत: जैन धर्मावलम्बी तीर्थ को अति व्यापक रूप में स्वीकार करते हैं।
शोधप्रविधि मूलत: ऐतिहासिक तथ्यों के विवेचन हेतु विवरणमूलक है। प्राथमिक तथ्यों को युक्तिसंगत रूप से अलग-अलग कालखण्डों में विश्लेषित करने के साथ-साथ तीर्थस्थलों की महत्ता और उनकी प्रकृति के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। ऐसे तथ्यों पर विशेष बल दिया गया है, जो स्पष्टत: ऐतिहासिक महत्त्व के रूप में प्रस्थापित हैं। जैन एवं बौद्धधर्म से सम्बन्धित मन्दिरों, स्तूपों, गुहाओं और उनसे सम्बन्धित विशेष व्यक्तियों तथा घटनाओं आदि का उल्लेख किया गया है। प्राचीन ग्रन्थों के साथ-साथ पुरातात्विक अवशेषों और समकालीन प्रमाणों का भी इस शोध-प्रबन्ध में सदुपयोग किया गया है। तीर्थों के इतिहास के स्रोत के रूप में साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्यों के रूप में आधारभूत प्रचुर सामग्री शोध के लिए उपयोगी रही है।
जैन तीर्थों के सन्दर्भ में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के विभिन्न तीर्थों पर आधुनिक गवेषणात्मक ग्रन्थों के अभाव को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न ग्रन्थों का प्रणयन किया गया है, जो न केवल जैनतीर्थ के विषय में अलग-अलग तथ्य प्रदान करते हैं, अपित जैन साहित्यकारों की तीर्थ-दृष्टि को भी प्रस्तुत करते हैं। जहाँ एक ओर जैन परम्परा में २४ तीर्थङ्करों के कारण तीर्थों की बहुलता है वहीं बौद्धधर्म के गौतम बुद्ध . ही प्रधान धर्म प्रतिस्थापक रहे हैं। इस सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि आधुनिक इतिहासकारों ने जैनधर्म के २४ तीर्थङ्करों में अन्तिम दो तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ और महावीर
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