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प्राचीन भारत के प्रमुख तीर्थस्थल : बौद्ध और जैनधर्म के विशेष सन्दर्भ में: १०१ । जैन स्थापत्य एवं कला के अन्तर्गत ऐतिहासिक दृष्टि से जैनधर्म के प्राचीन तीर्थस्थलों से प्राप्त मन्दिरों, मूर्तियों, शिलालेखों, भित्ति चित्रों आदि की कला और स्थापत्य शैली का भी संक्षिप्त विवेचन किया गया है। धार्मिक क्षेत्रों में स्थापत्य एवं कला की विशिष्ट शैली का विश्लेषण तत्कालीन समाज में धर्म के प्रति समर्पण एवं सामाजिक व्यवस्था की विशिष्टता को इंगित करता है।
स्थापत्य एवं कला के आधार पर जैनधर्म के विषय में यह कहा जा सकता है कि जैन धर्मावलम्बी प्रतिमा निर्माण के क्षेत्र में बौद्ध और ब्राह्मण धर्म की अपेक्षा उन्नत स्थिति में थे। ऐसा प्रतीत होता है कि महावीर के समय में यक्ष मूर्तियों की भाँति तीर्थङ्करों एवं मुनियों की मूर्ति बनाने की प्रथा प्रचलन में नहीं थी, जो प्राचीन जैन प्रतिमाएँ प्राप्त हुई हैं, वे बौद्ध एवं ब्राह्मण धर्म की प्रतिमाओं से प्राचीन हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में जैन मूर्तिकला उन क्षेत्रों की तत्कालीन शैली से प्रभावित प्रतीत होती है। परवर्ती मूर्तियों एवं अभिलेखों के आधार पर २४ जैन तीर्थङ्करों के वर्ण, चिह्न, अनुचर, यक्ष एवं यक्षियों, जन्म तथा निर्वाण के सम्बन्ध में विस्तृत सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। जैन शिल्पकारों एवं कलाकारों के स्थापत्य पर प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर निर्माण करने की प्रवृत्ति परिलक्षित होती है।
__बौद्ध एवं जैनधर्म के सम्बन्ध में विभिन्न अध्ययन सामग्रियों का गहन विवेचन करने पर यह पाया गया कि उनमें काल-क्रम की अनियमितता, उपलब्ध तथ्यों में सम्बन्धहीनता तथा तुलनात्मक मूल्याङ्कन का अभाव निहित है। अतएव यह आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति के इन दो विशिष्ट धर्मों के उन प्राचीन तीर्थस्थलों का अध्ययन किया जाए जिन्होंने समकालीन भारतीय समाज और संस्कृति के साथ-साथ विश्व की अन्य संस्कृतियों को भी प्रभावित और परिमार्जित किया है।
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