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विधिपक्ष अपरनाम अंचलगच्छ (अचलगच्छ) का संक्षिप्त इतिहास
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वि०सं० १७१८ में कल्याणसागरसूरि के निधन के पश्चात् उनके शिष्य अमरसागरसूरि अंचलगच्छ के १९वें पट्टधर बने। इनके उपदेश से अंचलगच्छीय विभिन्न श्रावकों द्वारा प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार कराया गया और अनेक नतंन जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की गयी।८८ अमरसागरसूरि के उपदेश से वर्धमान शाह के पुत्र भारमल ने शत्रुजय की यात्रा की और वहाँ कल्याणसागरसूरि की चरणपादुका निर्मित करायी।८९
__अमरसागरसूरि के समय अंचलगच्छ में वाचक पुण्यसागर नामक विद्वान् हुए जिन्होंने जयइनवनलिकाकुवलय तथा मेरुतुंगसूरिकृत जीरावल्लापार्श्वनाथस्तोत्र पर टीकाओं की रचना की।९° पुण्यसागर की गुरुपरम्परा निम्नलिखित रूप में प्राप्त होती है
धर्ममूर्तिसूरि
भाग्यमूर्ति
उदयसागर
वाचक पुण्यसागर
वाचकः दयासागर (जयइनवनलिकाकुवलय और जीरावल्लापार्श्वनाथ
स्तोत्र पर टीकाओं के कर्ता) श्रीपार्श्व ने एक स्थान पर दयासागर की गुरु-परम्परा निम्नलिखित रूप में दी है११
धर्ममूर्तिसूरि
कल्याणसागरसूरि
भीमरल
उदयसागर
पुण्यसागर
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