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प्रतियोगिता की भाषा
चयन की प्रक्रिया के निर्धारित मानदण्ड
१. निबन्ध की गुणवत्ता, विचारों की स्पष्टता एवं उनका सम्यक् प्रस्तुतिकरण | निबन्ध में अपने कथन का सप्रमाण प्रस्तुतीकरण एवं आवश्यक स्थलों पर मूल ग्रन्थों से सन्दर्भ
२.
भाषा का स्तर ।
३.
निर्णायक मण्डल
१. प्रोफेसर सागरमल जैन : जिनशासन - गौरव जैन धर्म-दर्शन के अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त विद्वान् एवं वाराणसी स्थित पार्श्वनाथ विद्यापीठ के मानद् निदेशक, राष्ट्रीय स्तर की अनेक सङ्गोष्ठियों में प्रतिभागी । जैन धर्म दर्शन की ३० से अधिक पुस्तकों तथा १५० से अधिक शोधनिबन्धों के लेखक । आपके निर्देशन में ३० से अधिक शोधच्छात्रों ने पी-एच्०डी० की उपाधि प्राप्त की है।
निबन्ध हिन्दी या अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हो सकते हैं।
२. प्रोफेसर सुदर्शनलाल जैन : जैन धर्म-दर्शन के विश्वविश्रुत विद्वान्, सम्प्रति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग में प्रोफेसर, जैन धर्म पर अनेक पुस्तकों के लेखक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की अनेक सङ्गोष्ठियों में प्रतिभागी। आपके निर्देशन में १५ से अधिक शोधच्छात्रों ने पी-एच्०डी० की उपाधि प्राप्त की है।
३. डॉ. धर्मचन्द जैन : जैन धर्म-दर्शन के प्रख्यात विद्वान्, सम्प्रति जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर में संस्कृत विभाग में रीडर, जैन-न्याय के गहन अध्येता एवं जैन धर्म पर कतिपय विशिष्ट ग्रन्थों के लेखक ( आपके निर्देशन में ६ से अधिक छात्रों ने पी-एच्०डी० की उपाधि प्राप्त की है।
चयन प्रक्रिया
२.
-
१. भेजे गये निबन्ध पार्श्वनाथ विद्यापीठ को दिनांक ३० जून, १९९९ तक स्वीकृत होंगे। समस्त निबन्धों की फोटो कॉपी बनायी जायेगी तथा प्रतियोगियों के उम्र वर्ग के आधार पर उन्हें एक विशिष्ट कोड नं. दिया जायेगा ।
३.
निबन्धों की फोटो प्रतियाँ (बिना लेखक के नाम के) जिनमें कोड नं. अंकित होगा, प्रत्येक निर्णायक को भेजी जायेगी ।
निर्णायकों द्वारा अंकित निबन्ध प्राप्त होने पर उनमें क्रमश: प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय पुरस्कार के लिए चयनित प्रतियोगियों की घोषणा की जायेगी।
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