Book Title: Sramana 1999 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 155
________________ १५२ : श्रमण/अप्रैल-जून/ १९९९ ९०. वही, पृ० १५८-५९. ९१. द्रष्टव्य, कल्याणसागरसूरि के शिष्य-प्रशिष्यों की तालिका के अन्तर्गत ९२-९४. लघुपट्टावली, पृ० १६१-६२. ९५-९६. वही, पृ० १६५-६६. ९७. वही, पृ० १७०. ९८. द्रष्टव्य अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ८३३-८४८. ९९-१००. लघुपट्टावली, पृ० १७१. १०१-१०२. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ५१६-१७. १०३. अचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ३२६. १०४-१०५. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ५१५-१६. १०६. वही, पृ० ५१८-१९. १०७. वही, पृ० ५१९. १०८. वही, पृ० ५२०. १०९. वही, पृ० ५२१. ११०. लघुपट्टावली, पृ० १७३. १११. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ५२६ और आगे ११२. लघुपट्टावली, पृ० १७७-१८०. ११३. वही, पृ० १८१ और आगे. ११४. वही, पृ० १८३-१८४. ११५. इस शाखा का भी स्वतन्त्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो अद्यावधि अप्रकाशित है। ११६-११७. लघु पट्टावली, पृ० १८४ और आगे. __ आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग १, विभाग ४, पृष्ठ १४२-१६१. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ५९४-९९. ११८. आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग १, विभाग ४, पृष्ठ १४२-१६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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