________________
१९० :
श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
सत्यान्वेषी एकादश - पं० फूलचन्द्र शास्त्री; प्रकाशक- सिद्धान्ताचार्य पण्डित फूलचन्द्र शास्त्री फाउण्डेशन, रुड़की (उ०प्र०), प्रथम संस्करण- वी०नि०सं० २५२४; आकार- डिमाई, पक्की बाइण्डिग; पृष्ठ- ८+७६; मूल्य- ५०/- रुपये।
दिगम्बर परम्परा के सर्वमान्य विद्वानों में स्व० पं० फूलचन्द्र जी शास्त्री का नाम अत्यन्त श्रद्धा के साथ लिया जाता है। उनके द्वारा की गयी जैनधर्म-दर्शन एवं साहित्य की सेवा से सम्पूर्ण समाज भली-भांति सुपरिचित है। प्रस्तुत पुस्तक सत्यान्वेषी एकादश उनके द्वारा अब से ५० वर्ष पूर्व अर्थात् स्वतन्त्रता प्राप्ति के तत्काल बाद लिखे गये लेखों का संकलन है, जिसे स्वतन्त्रता की स्वर्णजयन्ती के अवसर पर प्रकाशित किया जा रहा है। ये लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं। पण्डित जी ने जैनधर्म-दर्शन के मूल सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में अपने जो विचार व अवधारणायें विभिन्न समस्याओं के समाधान के सन्दर्भ में प्रस्तुत किये हैं वे आज भी उतने प्रासंगिक हैं। जाति-पांति, हरिजन मन्दिर प्रवेश आदि की समस्या के समाधान के सम्बन्ध में उनके द्वारा प्रस्तुत किया गया विचार आज भी उतना ही जीवन्त है जितना उस समय था। अपने क्रान्तिकारी विचारों के लिये उन्हें समाज के रूढ़िवादीजनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा, परन्तु वे कभी भी अपने न्यायपूर्ण विचारों से विचलित नहीं हुए। अध्यात्म समाजवाद, जाति-पांति और हरिजन मन्दिर प्रवेश आदि ज्वलन्त प्रश्नों पर पण्डित जी द्वारा लिखे गये लेखों का पुनर्प्रकाशन कर संस्था ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इस संकलन के उपलब्ध हो जाने से युवावर्ग भी पण्डित जी के क्रान्तिकारी विचारों से अवगत होते हुए उनसे प्रेरणा प्राप्त कर सकेंगे इसमें सन्देह नहीं। ऐसे सुन्दर व लोकहितकारी प्रकाशन के लिये प्रकाशकगण बधाई के पात्र हैं। पुस्तक की साज-सज्जा आकर्षक तथा मुद्रण कलापूर्ण है। यह पुस्तक सभी के लिये समान रूप से पठनीय व मननीय है।
श्रमण संस्कृति- तरुणाचार्य चादर विशेषांक; वर्ष २-३; अंक ११-१२-१; सम्पा०- श्री उम्मेदमल गांधी; प्रका०- श्री अखिल भारतवर्षीय साधुमार्गी जैन श्रावक संघ; आकार- रायल अठपेजी; पृ० ५५९; मूल्य- १५०/- रुपये मात्र।
___ श्रमण संस्कृति नामक पत्रिका का प्रस्तुत अंक हुक्मगच्छीय तरुणाचार्य विजयमुनि जी म.सा० के चादर समर्पण समारोह (३१ जनवरी १९९९) के अवसर पर प्रकाशित किया गया है। इसमें तरुणाचार्य श्री के व्यक्तित्व, उनके यशस्वी कृतित्व, उनकी लोकप्रियता, उनकी वैचारिकता आदि पर विद्वानों के चुने हुए लेखों को स्थान दिया गया है। इसके अतिरिक्त आचार्य पद की गुणशीलता के बारे में आचार्य हस्तिमल जी, उपाध्याय अमर मुनि जी, आचार्य महाप्रज्ञ जी, प्रेममुनि जी, आचार्य रजनीश,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org