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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
विदिशा, चन्देरी, दशपुर, अवन्ति, कुण्डुगेश्वर, पश्चिम भारत के राजस्थान और गुजरात क्षेत्र में अर्बुदगिरि, उपकेशपुर, करहेटक, नन्दिवर्धन आदि और दक्षिण भारत के महाराष्ट्र, आन्ध प्रदेश, कर्नाटक आदि क्षेत्रों में स्थापित तीर्थों का विवरण दिया गया है। उत्तर भारत में अयोध्या को ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमति और अनन्त नामक पाँच तीर्थङ्करों के जन्म एवं प्रसिद्धि क्षेत्र के कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण जैनतीर्थस्थल माना गया है।
ऐसा नहीं कि केवल तीर्थङ्करों के जन्म, दीक्षा या कर्मक्षेत्र ही तीर्थस्थल के रूप में विख्यात हैं, कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जो तीर्थङ्करों के अतिरिक्त जैन मुनियों के कारण सिद्ध क्षेत्र के रूप में स्वीकृत हैं। पाटलिपुत्र इसी प्रकार का एक प्रसिद्ध सिद्ध क्षेत्र है जहाँ श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय के मन्दिर हैं। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में कटक, भुवनेश्वर, खण्डगिरि, उदयगिरि आदि क्षेत्रों में जैन मुनियों के प्राचीन मन्दिर, योग साधना स्थलों को भी पवित्र क्षेत्र माना जाता है। इसी प्रकार मध्य प्रदेश के जैन तीर्थ क्षेत्रों में पावागिरि, सिद्धवरकूट, चूलागिरि आदि स्थल जहाँ किसी भी तीर्थङ्कर का एक भी कल्याणक नहीं हुआ है लेकिन जैन मुनियों के निर्वाण एवं ज्ञान कल्याणक क्षेत्र के कारण प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र माने जाते हैं।
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि तीर्थङ्करों के जन्म, दीक्षा आदि समस्त प्रमुख घटनाओं से सम्बन्धित स्थलों को तीर्थ क्षेत्रों के रूप में स्वीकृत किया गया है। साथ ही जैन धर्मावलम्बियों ने जैन मुनियों के योग-साधना, दीक्षा, कल्याणक और मोक्ष आदि से सम्बन्धित स्थलों को भी तीर्थस्थल के रूप में प्रतिस्थापित कर लिया है। ___ बौद्ध स्थापत्य एवं कला के सम्बन्ध में इस शोध-प्रबन्ध में विस्तृत विवरण दिया गया है। बौद्धधर्म के स्थापत्य और कला के सन्दर्भ में अशोककालीन कला प्रतीकों से विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। पत्थरों पर अभिलेखों की खुदाई, स्तूपों की निर्माण शैली, बौद्ध विहारों, मन्दिरों और गुफाओं में प्रतिस्थापित मूर्तियाँ, भित्ति चित्र और पत्थरों के विशाल स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। बौद्धधर्म के प्रति अशोक का अनुराग उसकी कलात्मक सृजनात्मकता से भी प्रतीत होता है। उसने अपने साम्राज्य में विभिन्न स्तूपों का निर्माण कराया। सिंहों से युक्त स्तम्भ-शीर्ष, स्तम्भों पर किया गया पालिश और उन पर उत्कीर्ण अभिलेख तत्कालीन कला की विशिष्टता को इंगित करते हैं। गया, साँची और सारनाथ जैसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों पर निर्मित बौद्ध विहार और मन्दिर बौद्ध कला के सृजनात्मकता और स्थापत्य शैली की विशिष्टता को प्रतिबिम्बित करते हैं। स्तुपों के मध्य में बनायी गयी मेधि और स्तूपों की निर्माण शैली प्राचीन कलात्मकता को इंगित करती है। अजन्ता, कार्ले, पभोसा, उदयगिरि, खण्डगिरि आदि क्षेत्रों में बौद्ध कला के उत्कृष्ट अवशेष प्राप्त हुए हैं।
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