________________
१२८
:
श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
१. धर्मशेखरसूरि २. महीतिलकसूरि ३. माणिक्यशेखरसूरि ४. माणिक्यसुन्दरसूरि ५. माणिक्यकुंजरसूरि ६. महीनन्दनगणि ७. मानतुंगसूरि ८. मेरुनन्दनसूरि ९. भुवनतुंगसूरि १०. उपाध्याय धर्मनन्दनगणि
आचार्य जयकीर्तिसूरि के पट्टधर जयकेशरीसूरि हुए। अंचलगच्छीय पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १४६१ (१४७१....? ) में इनका जन्म हुआ, वि०सं० १४७ . में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि०सं० १५०१ में गच्छनायक बने। जयकेशरीसूरि अपने समय के प्रभावक जैनाचार्यों में से एक थे। इनके द्वारा रचित आदिनाथस्तोत्र नामक कृति प्राप्त होती है।४० इनके उपदेश से प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें सर्वाधिक संख्या में प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५०१ से लेकर वि०सं० १५३९ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : वि०सं०
प्रतिष्ठापित प्रतिमाओं की संख्या
१५०१
१५०२ १५०३
१५०४ १५०५ १५०८ १५०९ १५१० १५११
Nm 4G G Wama
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org