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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
वि.सं. १५०१ फाल्गुन सुदि १२ बी.जै. ले.सं. लेखांक ८५५
गुरुवार वि.सं. १५०१ फाल्गुन सुदि १२ प्रा.ले.सं. लेखांक १८२
गुरुवार जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १५०० में आचार्य जयकीर्तिसूरि का देहान्त हुआ, जबकि अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार वि०सं० १५०१ फाल्गुन सुदि १२ को उनके उपदेश से जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई है। इस आधार पर पट्टावलियों के उक्त विवरण को स्वीकार करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
आचार्य जयकीर्तिसूरि के विभिन्न शिष्यों का उल्लेख प्राप्त होता है जिनके बारे में संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : १. महीतिलकसूरि . वि०सं० १४७१ के तीन प्रतिमालेखों में इनका नाम मिलता है। इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है -
सम्वत १४७१ वर्षे आषाढ़ सदि २ शनौ श्रीमाली श्रे० सूरा चांपाभ्यां भगिनी काउं भगिनीपुत्री वइराकयोः श्रेयोर्थं तयोरेव द्रव्येन।। श्री अंचलगच्छे ।। श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च।
धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मुनिसुव्रत जिनालय, सैलाना अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ४०५।
सं० १४७१ वर्षे माघ सुदि १० शनौ प्राग्वाटवंशे विसा २० व्य० दोणशाखा उ० सोला पु००० षीमा पु०ठ० उदयसिंह पु०ठ० लडा भा० हकू पु०सा० झांबटेन श्रीअंचलगच्छे श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन पित्रोः श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिमुख्यश्चतुर्विंशतिपट्टः कारित: प्रतिष्ठितश्च।
मुनिसुव्रत की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २५.
सं० १४७१ वर्षे माघ सुदि १० शनौ श्रीमाली सा० आसघर (आसधर) भा० तिलू पुत्रेण सा० हांसाकेन पितुः श्रेयसे श्रीअंचलगच्छे श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन
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