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श्रमण)
प्राचीन भारत के प्रमुख तीर्थस्थल : बौद्ध और
जैनधर्म के विशेष सन्दर्भ में
(शोधप्रबन्ध-सार)
राजेश कुमार
प्राचीन भारत के प्रमुख बौद्ध और जैन तीर्थस्थलों का तथ्यपरक विश्लेषण इस शोध की मूल समस्या रही है। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति के समन्वयात्मक स्वरूप में सनातन धर्म और उसकी शृङ्खला में विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति, प्रसार और प्रभाव की स्थितियाँ दृष्टिगत होती हैं। सनातन धर्म की प्रकार्यात्मकता तीर्थस्थलों के माध्यम से संचालित होती रही हैं। धार्मिक प्रतिबद्धताओं को स्थापित एवं विकसित करने वाली प्रथाओं तथा परम्पराओं का अनुपालन उत्तरवर्ती मान्यताओं में भी दिखलाई देना अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। सनातनधर्म के प्रतीकों की भाँति निहित आधार की वैचारिकी में जिन नये धर्मों का प्रादुर्भाव हुआ उनमें भी मत विशेष के संस्थापक की स्मृति को बनाये रखने वाले प्रतीक नयी वैचारिकी के अभिकेन्द्र बन गये। इस प्रकार मतों की भिन्नता और उनके समर्थकों के प्रतिबद्धता ने नये तीर्थों का सृजन किया। इस परिप्रेक्ष्य में इस शोध के लिये आवश्यक तथ्य संगृहीत एवं विवेचित किये गये हैं।
परम्परागत समाज के बहुआयामी धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक संस्कृतियाँ तीर्थस्थलों से नियोजित एवं नियन्त्रित होती रही हैं। यथार्थ रूप में तीर्थस्थल धर्म विशेष से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट घटनाओं के प्रतीकात्मक स्वरूप हैं। तीर्थ प्राचीन सामाजिक व्यवस्था के लिये धर्म और संस्कृति के उद्गम केन्द्र के रूप में कार्य करते रहे हैं। धार्मिक प्रस्थापनाओं के सम्बन्ध में चिन्तन के अभिकेन्द्र इन स्थलों का उपयोग एक विशिष्ट जीवन-दर्शन और सांस्कृतिक उत्कर्ष हेतु भी किया जाता था।
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