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शर्की-कालीन हिन्दी साहित्य के विकास में बनारसी दास का अवदान : ९५
बहुरों उत्तरमुख बही
गोवै नदी अथाह ।।२५।। ४. उपरिवत् ५. एच०आर० नेविल, जौनपुर गजेटियर। ६. सैयद एकबाल अहमद, वही, पृ० ९०-९९;
गजेटियर मीरजापुर, (इलाहाबाद, १९०२), पृ० २०२, २०७. ७. विस्तार के लिए द्रष्टव्य - त्रिपुरारी भाष्कर, जौनपुर का इतिहास, १९६०,
साहित्यधर्मिता, जौनपुर विशेषांक, अप्रैल १९९०, पृ० ७५-७७. शिराज ईरान का एक ऐतिहासिक, सुन्दर एवं समृद्धशाली नगर होने के साथ ही शिक्षा का प्रधान केन्द्र भी रहा है और शर्की-काल में जौनपुर की भी यही स्थिति रही।
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