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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
भरतशिला नामक पद में रोहक कुमार का उदाहरण दिया है कि उज्जैन के राजा जितशत्रु प्रत्युत्पन्नमति रोहक की अनेक प्रकार से बुद्धि की परीक्षा लेते हैं और अन्त में उसे अपना प्रधानमन्त्री बना लेते हैं। २१ इस कथा में रोहक की बुद्धि का चमत्कार विभिन्न रूपों में वर्णित है।
'स्त्री-व्यन्तरी' के विषय में 'कारणिक'- नामक कथा में कहा है कि एक युवा पुरुष गाड़ी पर अपनी पत्नी को लेकर कहीं जा रहा था। रास्ते में पत्नी को प्यास लगी अत: पानी पीने के लिए गाड़ी से उतरकर वह गयी। इतने में एक व्यन्तरी ने उस पुरुष को देखा और उस पर मुग्ध हो गयी। उस व्यन्तरी ने उस युवा की पत्नी का रूप बनाया और गाड़ी में आकर बैठ गयी। युवक ने उसे अपनी पत्नी समझा और गाड़ी आगे बढ़ा दी। पत्नी पानी पीकर लौटी और देखा कि गाड़ी तो आगे बढ़ गई है तो वह रोने लगी। उसने चिल्लाकर अनेक प्रकार से अपने पति को गाड़ी रोकने के लिए आवाज लगायी। युवक ने गाड़ी रोकी और इन दोनों स्त्रियों की समान आकृति देखकर उसे महान् आश्चर्य हुआ। २२
औत्पत्तिकी बुद्धि के अन्तर्गत पहेलियों और प्रश्नोत्तरों के रूप में विविध प्रकार के मनोरंजक आख्यान प्रस्तुत किये गये हैं, जो भारतीय कथा-साहित्य की दृष्टि से बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं।
इसके अन्तर्गत कुछ मनोरंजक आख्यान इस प्रकार हैं - किसी रक्तपट (बौद्ध भिक्षु) ने एक क्षुल्लक से पूछा -- 'इस वित्रातट (वेन्यातट) नगर में कितने कौवें हैं? क्षुल्लक ने उत्तर दिया - साठ हजार कौवे हैं। तब भिक्षु ने पुनः प्रश्न किया - 'यदि साठ हजार से कम या ज्यादा हुए तब?' क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया - यदि कम हुए तब यह समझना चाहिए कि कुछ कौवे विदेश चले गये और अधिक हैं तब समझना चाहिए कि बाहर से कुछ और कौवे अतिथि के रूप में आ गये हैं।' - ऐसा उत्तर सुनकर शाक्यपुत्र भिक्षु निरुत्तर होकर रह गया। २३
इसी प्रकार एक बार किसी शाक्य भिक्षु ने एक गिरगिट को अपना सिर धुनते हुए देखा। एक क्षुल्लक (लघुश्वेताम्बर साधु)२४ से वह उपहासपूर्वक बोला --- तुम तो सर्वज्ञ पुत्र हो, अत: यह बतलाओं कि यह गिरगिट अपना सिर क्यों धुन रहा है? उस क्षुल्लक ने तुरन्त उत्तर दिया - 'शाक्यव्रती! तुम्हें देखकर चिन्ता से आकुल हो यह ऊपर-नीचे देख रहा है। तुम्हारी दाढ़ी-मूंछ देखकर इसे लगता है कि तुम भिक्षु हो, लेकिन जब वह तुम्हारे लम्बे चीवर को देखता है तो तुम इसे भिक्षुणी नजर आते हो। यही कारण है कि यह गिरगिट अपना सिर धुन रहा है। यह सुनकर बेचारा भिक्षु निरुत्तर रह गया।
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