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श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९
सामान्य रूप से द्रव्य दो ही प्रकार का है - एक जीव और दूसरा अजीव। इन्हें ही क्रमश: चेतन और जड़ के नाम से पुकारते हैं। जड़ के अन्तर्गत भौतिक पदार्थों का विश्लेषण किया जाता है। अत: तत्सम्बन्धित जो भी ज्ञान-विज्ञान है वह आधुनिक विज्ञान सम्मत मैटर का ही प्रतिरूप है और चेतन आत्मा अथवा जीव का प्रतिनिधिभूत है, जिसे अंग्रेजी में स्पिरिट (Sprit) कहते हैं।
सामान्यत: चेतन और जड़ - ये ही दो मूल तत्त्व हैं, किन्तु चेतन के अतिरिक्त जो जड़ रूप द्रव्य हैं उनकी संख्या पाँच है और वे हैं - पदगल, धर्म, अधर्म, आकाश
और काल। जीव तत्त्व की तरह पुद्गल तत्त्व पर भी वर्णीजी ने विचार किया है। उन्होंने पुद्गल के उत्पाद, व्यय और धौव्य रूप को बहुत ही सरल रूप में प्रस्तुत किया है
और स्वयं ही पदार्थ की परिवर्तनशीलता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं और बाद में उसका समाधान भी देते हैं। वे लिखते हैं कि - . कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं जो बदलते हुए दिखाई नहीं देते हैं। जैसे पाषाण या धातु
की प्रतिमा आदि। परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर ऐसा नहीं है, क्योंकि सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर प्रतिमा अथवा पाषाण-स्तम्भ आदि जीर्ण होता दिखलाई देता है। अत: सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर प्रत्येक पदार्थ बदल रहा है। १०.
पदार्थ गुणों व पर्यायों का समूह है। जिस प्रकार गुण पदार्थ से पृथक् कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है। इसी प्रकार गुणों से पृथक् पदार्थ भी कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है।
प्रत्येक पदार्थ में चार गण पाये जाते हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव। इन चारों को पदार्थ के स्वचतुष्टय कहते हैं। द्रव्य से भिन्न गुण नहीं हैं और गुण से भिन्न द्रव्य नहीं हैं। इन्हीं द्रव्यों/गणों/पदार्थों के समूह को वर्णीजी ने विश्व कहा है। वे लिखते हैं कि - जो कुछ भी यहाँ दिखाई दे रहा है या प्रतीति व अनुमान में आ रहा है उस सबके समूह का नाम विश्व है। अर्थात् पदार्थों के समूह का नाम विश्व है। ११
पदार्थ, वस्तु और द्रव्य - ये सभी पर्यायवाची हैं। अत: जो सत्ता रखता है वही पदार्थ है। प्रत्येक पदार्थ परिवर्तनशील और क्रियाशील है। आम्र का हरे से पीला होना अथवा खट्टे से मीठा होना परिवर्तनशीलता है और आम्र का ऊपर से नीचे जमीन पर आना पदार्थ की क्रियाशीलता है।
जीव और पुद्गल - इन दो द्रव्यों के पश्चात् धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य पर विचार किया गया है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि - जैनदर्शन में जब पदार्थों अथवा द्रव्यों के प्रसङ्ग में धर्मद्रव्य अथवा अधर्मद्रव्य की चर्चा की जाती है तो वहाँ धर्मद्रव्य का सम्बन्ध पुण्य से अथवा अधर्मद्रव्य का सम्बन्ध पाप से कदापि नहीं है। हाँ! ये अमूर्तिक हैं, अथवा दिखलाई नहीं देते हैं, किन्तु इनकी लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई अवश्य है- जैसे जीव पदार्थ की। धर्म और अधर्म – इन दोनों द्रव्यों का आकार
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