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श्रमण)
शर्की-कालीन हिन्दी साहित्य के विकास में
बनारसी दास का अवदान
डॉ० राजदेव दुबे
जौनपर के शी-शासन-काल में हिन्दी साहित्य भी अत्यधिक फला-फला। मध्यकालीन हिन्दी-साहित्य को भक्ति आन्दोलन ने सर्वाधिक प्रभावित किया। भक्ति आन्दोलन के प्रवर्तकों के अथक प्रयास से हिन्दू एवं इस्लाम धर्म का सम्पर्क होने के परिणामस्वरूप मुस्लिम-शासकों के समय में भी हिन्दी-भाषा एवं साहित्य की अभूतपूर्व उन्नति तथा प्रचार-प्रसार एवं विकास हुआ। शर्की-कालीन कवियों में "विद्यापति ठाकुर" के पश्चात् कविवर “बनारसी दास" का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके सम्बन्ध में हम यह कह सकते हैं कि "जो स्थान माला के प्रथम पुष्प का एवं गगनमण्डल में प्रथम नक्षत्र का होता है, वही स्थान शर्की-कालीन हिन्दी कवियों में बनारसी दास का है।"
शर्की-शासक अपनी हिन्दू-प्रजा एवं हिन्दी साहित्य के कवियों के प्रति भी समान रूप से सहिष्णु थे। हिन्दू-मुस्लिम सांस्कृतिक वातावरण ने शी-शासन में हिन्दी साहित्य की उन्नति में पर्याप्त योगदान दिया। सन्त कवि कबीरदास, मिथिला के प्रसिद्ध कवि विद्यापति ठाकुर, बनारसीदास आदि कवियों का शर्की-शासन-काल में हिन्दी साहित्य के विकास में महत्त्वपूर्ण प्रेरक-भूमिका रही है।
बनारसी दास के पूर्वज ग्वालियर के निवासी थे। आपके दादा मूल्यदास, जिनको व्यापार का बड़ा शौक था और अपने समय के प्रसिद्ध व्यापारी बन गये थे। संवत् १६०८ में उनके पुत्र के रूप में खरगसेन का ग्वालियर की भूमि में जन्म हुआ। अभी उनकी अवस्था चार वर्ष की थी कि मूल्यदास का देहान्त हो गया। शर्की-बादशाहों के शासन-काल में जौनपुर की ख्याति ग्वालियर तक पहुँची हुई थी और इब्राहीम शाह-शर्की *. प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय, वाराणसी-२२१००५
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