Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts
APPENDIX 1 (Extracts from important manuscripts) OPENING (w.) ॥ श्रीजानकीवल्लभाय नमः ॥ (on f. 3a)
रामप्रेमपयोधिवर्द्धन विधुः शृङ्गारसा रास्पदं,
संसारार्णवदासतारण [त] रिर्मायातमोदीपिका । विद्युद्भासुखवृन्दवर्षणकरी कादम्बिनी काप्यसौ,
मद्ध कञ्जनिवासिनी विजयतां श्रीजानकी सर्वदा ॥१॥
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गोविन्दगुरुगुणालीश्रुतिशर्मभवाश्रुमालतीमाल । धृतचन्दिर गुणमन्दिर लम्बोदर तावकं पदं वन्दे ॥७॥ विन्ध्ये रिपुगजसिंहो जयसिंहो राजसिंहोऽस्ति । तनुते तस्य तनूजो ग्रन्थं सङ्गीतरघुनन्दनाख्यम् ।।८।। चिरमननसमनुभूतश्रीसीतारामराससंयुक्तः । सद्यो रसिकजना [नां] हृदयानन्दी भवत्वयं सुचिरम् ।।९।। नृपबोधवेदक्षितिपालनकारी प्रलयपयोधिसलिलसञ्चारी।
श्री रघुवर मीनसुरूप ! जय जगदीशपते ! ॥१॥ CLOSING (ct.)
रासप्रेमचमत्कारप्रमोदाय महात्मनाम् । COLOPHON :
विन्ध्येशविश्वनाथेन कृता व्यङ्गयार्थचन्द्रिका ॥
इति सिद्धिः। श्रीमन्महाराजाधिराज श्रीरामचन्द्रकृपापात्राधिकारि
श्री विश्वनाथसिंहकृतायां व्यंग्यार्थचन्द्रिकानाम्नि टोकायां षोडशः सर्गः १६।। CLOSING (w.) एषा माधुर्यधारा धरणितलगता विश्वनाथप्रचारा, COLOPHON : भास्वत्सन्तानतारा परिवृढविशदध्यानसंधानसारा।
पापौषोदंचदारा भवजलधिसमुत्तारणे नौरुदारा,
शृङ्गारकप्रसारा जयति परगुरणग्राहकस्वान्तकारा ॥१॥
इति श्रीमन्महाराजकुमार श्रीविश्वनार्थातहविरचिते संगीतरघुनन्दने ग्रन्थमाहात्म्यवर्णनपूर्वकप्रण मादिविधानं नाम षोडशः सर्गः १६ सम्पूर्णम्
शुभमस्तु मंगलं दद्यात् । Post. colophonic : सम्वत् १९२६ माघशुक्ल ८ कुज ।
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