Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (B.O. Jaipur; Pt. H. N. Vidyābhāsana Collection)
धरमदास खंडेलवाल मुसरफो ठाकुर सीतलदास कायथ माथुर बास गढ रणथंभ सूत्रधार माधोगोविन्द रामगढ़ का प्राज्ञा उदयपुर पंडित टोड़ा का सुवाई खिजमतदार । श्री शुभं
॥ श्री रामजी ॥
ब्रह्माजी सिधि श्रीगणेसायनमः महाराजाधिराज महाराजाजी सवाई जैसिंघजीका राज में जोसी जीवारामको प तौ किसनरामको बेटौ स्यंभूरामकी माता बाई फुदो प्रोहित पीतांबर गंगारामकी पोती प्रोहित गिरधरदासजीकी बेटी देहुरो श्रोब्रह्मा जीकी मरम्मत श्री पौहुकरजी में कीयो मिती माह सुदी ५ संवत १७७६ का सुभे भवेत् बाचे जोनें राम राम बंच्यावसि प्रांवेरिका। 54. अांबेर के कछवाहा राजा मानसिंह के वृंदावन में बनाये हुए श्री गोविन्ददेवजी के मन्दिर में जो उनकी (कछवाह राजा मानसिंह की) प्रशस्ति लगी हुई है, उसकी नकल श्री वृन्दा(वन )विपिने शिवादिदिविषवृन्दावलीवन्दिते,
वैकुण्ठन्निरकुण्ठतारकवनश्रीयोगपीठस्थितः । श्रीगोविन्दतया श्रुतिस्मृतिसती सन्दोहवृन्दाह्वयः,
श्रीकृष्णः स्वकृपाकृपालन “ष्णक सदा भ्राजते ।।१।। श्रीमानर्कवरो' यदा भुवमपात् संवीतदैवाधुना,
सर्वः सौख्य प्रजाजनगणः स्वं धर्ममुच्चैर्भजन (न्) । श्रीगोविन्दपदं तदेत [८] पि ते वासाय सद्वैष्णवा,
... लम्भं लम्भः .. .................. तस्मै सदैवाशिषः ॥२॥ तस्मिस्तस्य सदान्वित क्षितिपतिः श्रीमानसिंहाभिधः,
पृथ्वीराज विराज ............" तेस्ये (?) श्चन्द्रमाः । भूभृद्भारहमल्लजातभगवद्दासात्मजो मन्दिर,
कुर्वन्निन्दिरयावलो"दाचलयानंदं सदा विन्दताम् ।।३।। .............. स्तथाविधमहाराजाधिराजोप्यसौ,
येनैवारिदिशंगतेन विजयी ध्वस्तभ्रमः क्रीडति । स श्रीमानसिंह........................."न वा,
युद्धे यस्य निपत्य दिव्य पितृपाः कीतिध्वजत्वं गताः ।।४।।
१. अर्कवर प्रकबर ।
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