Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 311
________________ 50 1 Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (B.O. Jaipur; Pt. H. N. Vidyābhūsana Collection ) सत्त्वं सत्ववतां स्थिति स्थितिमतां दुर्गारिण दुर्गाश्रितां, यः शौर्यादिह [ रो] द्विषां स धनिकस्तस्मात्प्रजज्ञ प्रभुः ॥ ११ ॥ करविहितजयश्रीः स (श) त्रुशल्यावसादा जितनरसहाय भीमसेनानुदातः । 'स्याद्योयमानन्दकारी [सुत] इव तपसोऽस्माद | भं ] कोऽभूत्स भूपः ॥ १२॥ चक्राक्रान्तिवको हतनरकभयानन्दिताशेषलोको लक्ष्मीलाभाद्विशेषप्रच [नि ] तपरमुद्ध्वस्तविद्वेषवारणः । सा (१०) धूनां सत्वसत्वस्थितिमुपविदधन्निग्रहं पाप [ भाजा - ] [म]म्भोधिप्राप्त कीत्तिर्मधुजि [ दि]व ततः कृष्णराजो बभूव ।। २३ ।। प्रतिज्ञां प्राक्कृत्वोद्भटकरिघटा संकटर, भटं जित्वा गौडक्षितिपमवनिं संगरहृतां । बलाद्दासीं चक्रे [प्र ]भुचरणयोर्यः प्रणयिनीं, ततो भूपः सोऽज्जित बहुरणः शंकरगणः ।।१४।। सेनानागंर्धन मदक [ लै ] मन्दरा [गेन्द्रतुङ्ग ] र्यस्यासंख्यैः श्रियमिव दिशां [ जेतु] राकटुकामैः । अन्तर्माग्नां विविध कुपतिश्लेषदुक्खादुरत्वान् भूयो नीतो मथनसमदप्रव्यथां क्षोभिताम्भः ॥ १५॥ क (१२) न्दप रूपदर्पं रविरतुलमहो देवमंत्री समंत्र - शार्ङ्ग संग्रामवातं दश [ शत ] नयनो नाकधामाधिपत्यं [त्यम् ] | मन्ये श्रीशं जहौ श्रीः श्रुतिनिहित [म] ति लज्जयाम्भो [ज] जन्मा, यस्मिन्पृथ्वी प्रशासत्य [स]मगुरणजिता नेकनाकप्रधानो [ ने ] ॥ १६ ॥ महामहीभृतः पुत्री शिवा (१३) नन्दित मानसा । [ते] नोढ़ा पार्वती तुल्या यज्जा नाम यश [श्विनी ] ||१७|| 'निश्चलमति शक्ति दधानं परां सेनारक्षरणदक्षमुग्रमहसं व्यावृत्तविद्वेषिणं । ******* BUS O सानन्दं शिखिनः परिग्रहितया श्रीहर्ष राजद्विजं Jain Education International तस्यां वीरमजीजनत्स तनयं स्कन्दोपमं भूभुजं ॥ १८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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