Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur (B.O. Jaipur; Pt. H. N. Vidyābhūüşana Collection )
वाह वाहगदीना । नित्यमेव साष्टांगेन प्ररणमति
सं० १२३३ । पौष सु० १५
(३) १ सेंव्रघ्नरालासितवष्टुगा सातवसासयाह
२ स० १३१ फा० सु० ८ श्रीत्रिविक्रमसुत पीवडक योगेस्वर ३ कुमाकुरवंदन श्री गोकर्ण नित्यं प्रणमति ।
ऽ सित्रिधर साल्हाषे धराणीधर महिवडधरे नित्यं प्रणमति । स० १३१ पी सु० १५
( मंदि [र] के बाहर के खंभे पर)
ऽ स्वस्ति ॥ देवश्रीगोकर्णस्य दुःश्री राज्यपुत्रघाल्हणो तत्र नु दिन प्रणम्यति । संवत् १२४४ श्रावण प्रर्व्वं ॥
उक्त शिलालेख की नकल के साथ संग्रहकर्त्ता पुरोहित श्रीहरिनारायणजी की निम्न टिप्परगी भी है
राजमहल के पास "बीसलपुर " ग्राम में एक पुरारणी चाल का पाषाणमय शिखरबंध मन्दिर है, जिसको बनावट और कारीगरी को देख चक्कर आता है ।
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सभामण्डप में आठ खंभे ऐसे हैं जिनके जोड़ पाँच-पाँच हाथ लम्बे और (५1 ) = और पाँच-पाँच हाथ का लपैट है । इनमें पत्थर की कुराई अच्छी है । पुतलियां चार २ हरेक खम्भे में हैं । पुतलियों के नीचे चार २ मूरतें (एक के नीचे एक ) हैं । ये मूरतें जैनियों की-सी प्रतीत होती हैं । खम्भों के ऊपर लटकती हुई मल्लाकार चतुर्भुज मूर्तियाँ हैं । इन से ऊपर उसी खम्भ का एक ३ हाथ लम्बा टुकड़ा उस पर इन से कुछ छोटी ग्राठ मूर्तियाँ वैसी ही फिर हैं | निज मन्दिर के दरवाजे के ऊपर एक सिद्ध की मूरत है । इसी से प्रतीति होती है कि यह मन्दिर जैनियों का है ( था ) अब इस में इस समय एक बंडी सी जलेरी में एक बड़े से महादेवजी स्थापित हैं । और जहाँ मूर्तिस्थापन का स्थान है वहाँ किसी अन्य स्थान की बहुत पुराने समय की श्याम पत्थर में खुदी हुई एक चतुर्भुज शंख-चक्र-गदा-पद्म-वैजयन्ती - क्रीट-मुकुटकुण्डलधारी खड़ी हुई श्रीविष्णु की मूर्ति है । वैसी ही उस के समीप एक दूसरी मूर्ति है । हिंडोले कहीं-कहीं फूट गिरे हैं । अब महादेव वा विष्णु का कोई भी पूजन नहीं करता ।
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