Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur

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Page 334
________________ COLOPHON : Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts APPENDIX 3 (Extracts from important manuscripts) Jain Education International विरचितमुदितेन प्रीतियुक्तेन तेन भुवि कमिह विदध्याच्छृण्वता पाठकानाम् ||४०|| सर्वं खल्विदं ब्रह्मेति श्रुत्या सर्वत्र ब्रह्मता । ब्रह्मैव तादृशं यस्मात् सर्वात्मकतयोदितम् ||४१ ॥ इति श्रीहरियुगब्रह्मविरचितायां दधिमथोमहिम्नस्तोत्र सम्पूर्णम् ॥ 352. दामोदरनीराजनस्तोत्रम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥ ॥ अथ दामोदरनीराजनस्तोत्रम् ॥ श्रीदामोदर सुरवर जयसुखकन्द हरे, जय जय जय संसाराम्बुधित र कतरे । जय गोपीजनवल्लभ हृतजनितापतते, जय जय कंसविनाशन जय सुरवृन्दपते जय० जय जय गरुड ॥ १ ॥ जय कुटिलालकमण्डितमुखवारिज सुमते मुकुटमण्डितमस्तक अधराहितवेणो ॥२॥ जय वृन्दावनभूतलबन्दीकृत रेगो ( ध्रु) जय पीतवसनमण्डितकटितट तव चरणौ वन्दे कानककटको मंजीराभरणौ, यस्तव रूपं पश्यति निवसति किमु धरणौ नहि लब्ध्वाऽपि निवासं यात्य " तरणौ ॥ २॥ जय० ।। परिहृतरागमहाजनमानसहंस सताम्, दारितदुरितसमूहः परिहर मम ममताम् । कृपया देव निवेशय बुद्धौ समसमताम्, नित्यं हृदयस रोजे करुणाकर रमताम् || ३ || जय० ॥ जय गोपवधूभिः सह सौरतकर्मरते जय राधालिङ्गनरतमत्तद्विरदगते । नित्यं चित्त निवसतु मम तव विमलतनुः, स्तु पुनरागमनप्रदमलिनं कृष्णतनुः || ४ || जय० ॥ [ 73 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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