Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts APPENDIX 2 (Copies of inscriptions)
पुस्ती इस मन्दिर की महान् अद्भुत । कोई लगभग ३० हाथ फेरी होगी । और तमाम पुस्ती पासे के आकार बहुत मोटी चौकियों से चारों ओर से बनी हुई है । एक-एक चौकी १५ मन से कम न होगी ।
कुल काम पत्थर का है । और बनानेवाले ने इसी अभिप्राय से बनाया है कि चिरस्थायी रहे । परन्तु दुष्ट यवनों ने सर्वं मूर्तियाँ फोड़ डालीं ।
ग्वालियर दुर्ग के शिव मन्दिर में लगी लगी हुई प्रशस्ति की प्रतिलिपि
(१)
(२) रव्याम् ॥ तमन्वक प्रतापावनम्रारिमोलि स्रगम्यर्चनीयाङ्घ्रिपीठोपकण्ठः अधिष्ठाय गोपालिकैराधिपत्ये वभौ भूमिपालो महीपालदेवः ॥ X ॥ प्रति (तो) पाखिल क्षत्रियक्षोददक्षो य एकातपत्रां धरित्रीं व्यधत्त । दिशादन्तिकुंभस्थली शंखभूषां स्वकीर्त्ति त्रिलोकीतटान्ते न्यधत्त ॥ X ॥
वैवस्वत कर दण्डाश्लिष्टेपा"
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कुमुदवन विकासी कृद्राजा ॥ X ॥
पादानिह क्षितिभृतां दघतः शिरःसु देषायसारण पटोःस दिन श्रियश्च । धामाधिकस्य तरणेरिव दुःसहत्वं यस्यावहद्दिशि दिशि प्रसरत्प्रतापः ॥ * ॥
उदार समरारंभो दूरे सुकुरुते रिपून् ।
यस्य प्राणवार्तापि पलायनपरायणान् ।
मेवस्य भालान्धकवर्त्मभेदं रुदाद्यपरलिकबू ||४||
सदागच्छतु कालयज्वा ॥
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श्रीमान् बभूव मथुराभिजनो विमाय: कायस्थवंशविपिनाम्बुधरः प्रहृष्टाः । शिष्टास्त्रिवर्गपथगामिमनोरथस्य यस्याध्यगीषत मनोरथ इत्यभिख्याम् ॥ भुवनपालनृपद्रविरणव्ययागमनियोगनिबंधन लेखिनः ।
गणिततत्त्वसमस्तलिपिज्ञता गुरणकृतस्तवनेऽस्य गुरुर्लघुः ॥
- ललिताङ्गयष्टि: ।
कान्ताङ्गका स्पष्टीकृतात्मकुलशीलकलानुभावा भावानुरक्तिपरमास्य रमेव विष्णोः ॥ X ॥
यो मानिनां कैरवकुण्डलानां प्रल्हा
"त्तमधादिवेन्दुः ।
हेमानि चन्द्रश्चतुरर्णवाच(च्च) भ्रांतोरुकीर्तिस्तनयोऽस्य जज्ञे ॥ ॥
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