Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
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Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts APPENDIX 2 (Copies of inscriptions)
52. जयपुर म्यूजियम में सुरक्षित ग्रामेर के राजा मानसिंह कछवाहा का वि० सं० १६६६ का शिलालेख
स्वस्ति श्रीमन्नृपविक्रमादित्य राज्यातीत संवत् १६६६ सालिवाहनशकातीत १५३४ फाल्गुनशुक्ले ५ रविवासरे श्रीमज्जहांगीरसाहिसलेमराज्ये वर्तमाने श्रीरघुवंशतिलक कछवाहकुलमंडन श्रीश्री राजा पृथ्वीराज तत्पुत्र श्री राजा भारहमल्ल - तत्पुत्र श्री राजा भगवानदासतत्पुत्र-सकलनरेन्द्रचूडामणि - प्रतापपराभूतसमस्तशत्रुगरण - समस्त पृथ्वी विजय प्राप्तमहायशोराशिविराजमानश्रीमहाराजाधिराज - श्रीमानसिंहनरेन्द्रकारितं रामगढप्राकाराख्यं दुर्गं कूंपारामोपशोभितं तत्र परमपवित्र श्रीपद्माकरपुरोहितपुत्र श्रीपुरोहितपीतांबरस्याधिकारसिद्धं ॥ कर्जं निजुक्ता शिल्पिन । एतद्देशीय - निजामश्च ॥ ग्रन्ये च तन्मतानुसारिणः ॥
तत्र
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53. रोहतासगढ़ के भीतरी द्वार पर लगे हुए महाराज श्री मानसिंहजी के शिलालेख की नकल मूल लेख संवत् १६५४
श्रीगणेशाय नम प्रभोधीषुरसेन्दुभिः परिमिते पुण्यायने हायने,
चैत्रे मासि बलक्षपक्षबलिते षष्ठ्यां तिथौ शीतगोः । बारे सर्व गिरीन्द्रवंशतिलके श्री रोहिताश्वाचले,
श्रीमन्मानमहीमहेन्द्रसदनोद्धारं व्यगात्पूणताम् ॥१॥
श्रीमहाराजाधिराज श्रीमानसिं [ह] पुरोहितश्रीधराधिकारे भ ( म ? ) दबलभट्टेन कारितं
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समरष
नोट: - 'समरष' शब्द डॉ राजेन्द्रलाल मित्र के विचार से हिन्दी भाषा के 'स्मरण रख' का अपभ्रंश है |
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मेवाड़ के कस्बा माडल में राजा जगन्नाथ कछवाहे की बत्तीस खंभों की छत्री में
लगी हुई प्रशस्ति की नकल स्वस्ति श्रीगणेशाय नमः ।
यं ब्रह्म वेदान्तविदो वदन्ति परं प्रधानं पुरुषं तथान्ये । विश्वोद्गतं कारणामीश्वरंवा तस्मै नमो विघ्नविनाशनाय ॥ १ ॥ हजरत श्रीपातसाह अकब्बरजी की जलालदीन गाजी को पातसाही सलामत श्रीपातसाह हजरति साह सलेम जहांगीर विजयराज्ये पानसाह दिल्लो मुगलवेक ताको उमराव महाराज श्रीजगन्नाथजी राजश्रीभारमलसुत कछाहा राजा ग्रामेर का त्ताको छत्री संवराय राजश्री प्रभैकरसिंहजी राजश्रीकरमचन्दसुतः छत्री की प्रतिष्ठा हुई सम्वत् १६७० का बरषे शाके १५३५ प्रवर्त्तमाने मार्गशिर सुदी ११ एकादशी शुक्रवार के दिन श्री सिंहेश्वर महादेव थाप्या सन् १०२२ ( हिजरी ) मकाम मांडल छत्री कराई तमाम राजश्री प्रासानन्दजी पदमसुत बैसरजसुत पोतदार सहा
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