Book Title: Sanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
View full book text ________________
Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts
[ 27 APPENDIX 2 (Copies of inscriptions) १५. हन्तक देउवाकसुतजज्जट तथा बच्छिलाकसुतगग्गाक तथा दद्रकसुतजम्बक तथा सद्रटासुतजंबहरि एवमादि - १६. समस्ततेलिकश्रेण्या प्रतिकोल्हुकं मासि शुक्लनवम्यां शुक्लनवम्यां शुक्लनवम्यां तैलपल्लिका पलिका दातव्येत्यक्षयिनी१७. मया प्रदत्ता। तथाद्यैवामूभ्यामेव देवकुलाभ्यां श्रीगोपगिरितलोपरिनिवासि-मालिकमहरगादुल्लसुत-टिक्कक१८. तथा देद्दकसुत ज्यसेक तथा बहुलाकसुत-सिद्धक तथा जम्बाकसुत-सहदाक तथा दत्तिसुत . दुर्गधरि ननमाकेव्य१६. .."मक तथा........................."एवमादिसमस्तमालिकश्रेण्या पूजार्थं .................... कालापयिकहभट्ट सुयामा२०. ""ल्यापाण .... पण ..... प्रतिदिनं दातव्येत्यक्षयनामिका प्रदत्ता एतदुपरि लिखित ....... २१. त्तस्थानादिभि स्वदक्षयायाचन्द्रार्कक्षितिकालं प्रदत्तं परि .......... कैरपि न कर्त्तव्या ....... तथा स्वदत्तां परदत्तां वा यो२२. हरेत वसुंधरां । स विष्टायां कृमिभूत्वा बन्धुभिः सह मोदते । बहुभि२३. यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलम् । २४. ....................................।
२५. .................
कोटा-राज्यान्तर्गत 'कुँवालजो' नामक तीर्थ के कुंड पर लगा हुवा रणथम्भोर के चौहान
राजा हम्मीर का शिलालेख वि० सं० १३४५ का। शं वो लंबोदरो देयादेककालं कलत्रयोः ।
बुद्धिसिद्धयोः स्तनस्पर्शहेतारिव चतुर्भुजः ।।१।। दद्रुश्रीपदकुष्टदुष्टवपुषामाधिं विनिघ्नन्नृणां,
कारुण्येन समीहितं वितनुतां देवः कपोलेश्वरः । वामे यस्य चकास्ति चक्रतटिनी पृष्ठे च मंदाकिनी
तीर्यकेतुसुखापमाजलवहां कुंडं प्रसिद्धं पुरा ॥२॥ यदन्तिके श्राद्ध कृतां कुलकोटिविमुक्तिदः । अनादिपादपोऽद्यापि दृश्यते किल शाल्मलिः ।।३।। चाहमाननरेन्द्राणां वंशो विजयतामयम् । उपायुज्यत यइंडं कलौ गोवृष रक्षणे ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378