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स्थूल है। स्थूल को सूक्ष्म कैसे भोग सकेगा? यह तो अहंकार से विषय भोगता है और आरोपण आत्मा पर जाता है! कैसी भ्रांति! 'आत्मा सूक्ष्मतम है और विषय स्थूल हैं। सूक्ष्मतम आत्मा स्थूल को कैसे भोग सकता है?' 'ज्ञानीपुरुष' के इस वैज्ञानिक वाक्य को, खुद के सूक्ष्मतम स्वरूप में ही निरंतर अनुभवपूर्वक रहनेवाली दशा में पहुँचे बिना उपयोग करने लगे तो सोने की कटार पेट में भोंकने जैसी दशा होगी! इस वाक्य का उपयोग उन्हीं के लिए है जो जागृति की परम सीमा तक पहुँच चुके हों। और ऐसी जागृति तक पहुँचे हुए को स्थूल और सूक्ष्म विषय तो खत्म ही हो चुके होते हैं! विषयों से बाहर निकले बिना यदि इस वाक्य को खुद 'एडजस्ट' कर ले, उसका जोखिम तो 'खुद विषय से जकड़ा हुआ है और उससे छूटना चाहता है' ऐसा स्वीकार करनेवालों से भी बहुत ही ज्यादा है।
___ 'अक्रम विज्ञान' से जो जागृति उत्पन्न होती है, उसकी सहायता से विषय संपूर्ण रूप से जीता जा सकता है। इस विज्ञान से, विषय का विचार तक नहीं आए, विषय में चित्त भी न जाए, उस हद तक की शुद्धि हो सकती है। उसमें 'ज्ञानीपुरुष' की कृपा तो है ही और उसमें भी विशेषविशेष कृपा ही बहुत-बहुत बड़ी भूमिका निभाती है। साधक का तो इसमें ऐसा ही दृढ़ निश्चय चाहिए कि विषय से छूटना ही है। बाकी तो 'ज्ञानीपुरुष' के वचनबल तथा 'ज्ञानीपुरुष' की विशेष कृपा से इस काल में भी अखंड शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है!
अब अंत में, 'ज्ञानीपुरुष' की यह शील संबंधित वाणी अलगअलग निमित्ताधीन, अलग-अलग क्षेत्रों में, संयोगाधीन निकली है। उस सारी वाणी को एक साथ संकलित करके यह 'समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य' ग्रंथ बना है। इस दूषमकाल के विकराल महा-महा मोहनीय वातावरण में ब्रह्मचर्य' से संबंधित अद्भुत विज्ञान जगत् को देना, वह सोने की कटार जैसा साधन है और उसका सदुपयोग अंत में आत्म कल्याणकारी बन सकता है, ऐसा है। पाठक को तो विनम्र निवेदन इतना ही करना है कि संकलन में किसी भी प्रकार की भास्यमान क्षतियों के लिए क्षमा करके इस अद्भुत ग्रंथ का सम्यक आराधन करें!
- डॉ नीरू बहन अमीन के जय सच्चिदानंद
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