Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 12
________________ जिसे इसी देह में आत्मा का स्पष्टवेदन अनुभव करना हो, उसे विशुद्ध ब्रह्मचर्य के बिना इसकी प्राप्ति संभव ही नहीं है। जब तक ऐसी सूक्ष्मातिसूक्ष्म ‘रोंग बिलीफ' है कि विषय में सुख है, तब तक विषय के परमाणु संपूर्ण रूप से निर्जरित नहीं होंगे। जब तक वह 'रोंग बिलीफ' संपूर्ण सर्वांग रूप से खत्म न हो जाए तब तक अति-अति सूक्ष्म जागृति रखनी चाहिए। ज़रा सा भी झोंका आ जाए तो वह संपूर्ण निर्जरा (आत्म प्रदेश में से कर्मों का अलग होना) होने में अंतराय डालती है। विषय होना ही नहीं चाहिए। हममें विषय क्यों रहे? या फिर ज़हर पीकर मर जाऊँगा लेकिन विषय के गड्ढे में गिरूँगा ही नहीं, ऐसा अहंकार करके भी विषय से दूर रहने जैसा है। यानी किसी भी रास्ते से अंत में अहंकार करके भी इस विषय से मुक्त होने जैसा है। अहंकार से ब्रह्मचर्य पकड़ में आता है, जिसके आधार पर काफी कुछ स्थूल विषय जीता जा सकता है और फिर सूक्ष्मता से 'समझ' को समझकर और आत्मज्ञान के सहारे संपूर्ण रूप से, सर्वांग रूप से विषय से मुक्ति पा लेनी है। जब तक निर्विकारी दृष्टि प्राप्त नहीं हुई, तब तक कहीं भी नज़रे मिलाना, वह भयंकर जोखिम है। उसके बावजूद जहाँ-जहाँ दृष्टि बिगड़े, मन बिगड़े, वहाँ-वहाँ उस व्यक्ति के शुद्धात्मा का दर्शन करके, प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' को साक्षी रखकर मन से, वाणी से या वर्तन से हुए विषय से संबंधित दोषों का बहुत-बहुत पछतावा करना चाहिए, क्षमा प्रार्थना करना और फिर से कभी भी ऐसा दोष नहीं हो, ऐसा दृढ़ निश्चय करना चाहिए। यों यथार्थ रूप से आलोचना, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान होगा, तब विषय दोष से मुक्ति होगी। जहाँ ज़्यादा बिगड़ रहा हो, वहाँ उसी व्यक्ति के शुद्धात्मा से मन ही मन ब्रह्मचर्य की शक्तियाँ माँगते रहनी पड़ेंगी और जहाँ बहुत ही गाढ़ हो, वहाँ घंटों प्रतिक्रमण करके धोना पड़ेगा, तब जाकर ऐसे विषय दोष से छूटा जा सकेगा। सामायिक में आज तक पहले जहाँ-जहाँ, जब-जब विषय से संबंधित दोष हुए हैं, उन सभी दोषों को आत्मभाव में रहकर, जागृतिपूर्वक देखकर उसका यथार्थ प्रतिक्रमण करना होता है, तब जाकर उन दोषों से 11

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