Book Title: Samaz se Prapta Bramhacharya Purvardh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 11
________________ ब्रह्मचर्य की 'सेफ साइड' के लिए आंतरिक और बाह्य 'एविडेन्स' को सिफ़त से खत्म करने की क्षमता प्रकट होनी ज़रूरी है। आंतरिक विकारी भावों को समझ से, ज्ञान के पुरुषार्थ से विलय करे, जिनमें से विषय जो है वह संसार की जड़ है, प्रत्यक्ष नर्क समान है, फिसलानेवाली चीज़ है, जगत् कल्याण के ध्येय में अंतराय लानेवाली चीज़ है और 'थ्री विज़न' की जागृति और अंत में विज्ञान जागृति' द्वारा आंतरिक विषय को खत्म कर सकते हैं। 'विज्ञान जागृति' में खुद कौन है, खुद का स्वरूप कैसा है, विषय का स्वरूप क्या है, वे किसके परिणाम है, आदि पृथक्करण के परिणाम स्वरूप आंतरिक सूक्ष्म विकारी भाव भी क्षय हो सकते हैं। हालांकि बाह्य संयोगों में दृष्टिदोष, स्पर्शदोष और संगदोष से विमुख रहने की व्यवहार जागृति का उत्पन्न होना भी ज़रूरी है। वर्ना थोड़ी सी अजागृति विषय के कौन से और कितने गहरे गड्ढे में गिरा दे, वह कोई नहीं बता सकता! विषय का रक्षण, विषय के बीज को बार-बार सजीव कर देता है। ‘विषय में क्या बुराई है,' कहा कि विषय का हुआ रक्षण!! ‘विषय तो स्थूल है, आत्मा सूक्ष्म है, मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में विषय बाधक नहीं है। भगवान महावीर ने भी शादी की थी, फिर हमें क्या दिक्कत है?' बुद्धि ऐसी वकालत करके विषय का ज़बरदस्त 'प्रोटेक्शन' करवाती है। एक बार विषय का 'प्रोटेक्शन' हुआ कि उसे जीवनदान मिल गया! फिर उसमें से वापस जब जागृति के शिखर तक पहुँचे, तब जाकर विषय में से छूटने के पुरुषार्थ में आ सकता है! वर्ना वह विषयरूपी अंधकार में मटियामेट हो जाएगा, यह इतना भयंकर है! विषयी सुखों की मूर्छा ऐसी है कि कभी भी मोक्ष में नहीं जाने दे। लेकिन विषयी सुख परिणाम स्वरूप दुःख देनेवाले ही सिद्ध होते हैं। प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' द्वारा विषयी सुखों की(!) यथार्थता का पता चलता है। उस समय जागृति में आकर उसे सच्चे सुख की समझ उत्पन्न होती है तथा विषयी सुख में असुख की पहचान होती है। लेकिन फिर ठेठ तक 'ज्ञानीपुरुष' की दृष्टि से चलकर विषय बीज निर्मूल करना है। उस पथ पर हर प्रकार से 'सेफ साइड' का ध्यान रखकर पार उतर चुके 'ज्ञानीपुरुष' द्वारा बताए गए रास्ते पर चलकर ही साधक को, वह साध्य सिद्ध करना होता है। 10

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