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राजस्थानी जैन साहित्य की रूप-परम्परा
में अपभ्रंश संधियों में एवं ग्राम स्कन्धों में निबद्ध होता है । भाषा-काव्य (राजस्थानी) में संधि नाम की रचनाएं 14 वीं शताब्दी से मिलने लगती है। कतिपय संधि काव्य इस प्रकार है-आनंद संधि (विनयचंद), केशी गौतम संधि (कल्याणतिलक), नंदनमणिहार संधि (चारुचंद्र), उदाहरणर्षि संधि, राजकुमार संधि (संयममूर्ति), सुबाहु संधि (पुण्यसागर), जिनपालित जिनरक्षित संधि, हरिकेशी संधि (कनकसोम), चउसरण प्रकीर्णक संधि (चारित्रसिंह), भावना संधि (जयसोम) अनाथी संधि (विमलविनय), कयवला संधि (गुणविनय)। (4) प्रबन्ध, चरित, सम्बन्ध, आख्यान, कथा, प्रकाश, विलास, गाथा इत्यादिः
ये सभी नाम प्रायः एक दूसरे के पर्याय है। जो ग्रंथ जिसके सम्बन्ध में लिखा गया है, उसे उसके नाम सहित उपर्युक्त संज्ञाएं दी जाती हैं। इन नामों से सम्बन्धित कुछ काव्य रचनाओं के नाम है- भोज चरित (मालदेव), अंबड चरित (विनयसुंदर), नवकारप्रबन्ध (देपाल), भोजप्रबन्ध (मालदेव), कालिकांचार्य कथा, आषाढभूति चौपाई सम्बन्ध (कनकसोम)8 विद्या-विलास (हीरानन्द सूरि) । (5) पवाड़ो और पवाड़ा :
___ पवाड़ा शब्द की व्युत्पत्ति भी विवादास्पद है। डा. सत्येन्द्र, इसे परमार शब्द से व्युत्पन्न मानते हैं ।10 पवाड़ों में वीरों के पराक्रम का प्रयोग होता है ।11 यह महाराष्ट्र का प्रसिद्ध लोकछन्द भी है । बंगाली में वर्णात्मक कविता अथवा लम्बी कविता के
1. डा. हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ.237 2. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, पृ. 37 3. डा. हीरालाल माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य 4. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, पृ.305 5. राजस्थान भारती, भाग 5, अंक 1 जनवरी 1956 ई. 6. जैन गुर्जर कविओ,पृ.37 7. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ.98-100 8. युगप्रधान श्री जिनचंद्र सूरि, पृ.194-85 9. डा. माहेश्वरी-राजस्थानी भाषा और साहित्य, पृ. 248 10. मरूभारती, वर्ष 1, अंक 3, सं. 2010 11. कल्पना, वर्ष 1, अंक 1, 1949 ई.(हिंदी और मराठी साहित्य-पाचवें)