Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 106
________________ जैन-साहित्य में अगड़दत्त कथा-परम्परा एवं कुशललाभ कृत अगड़दत्तरास 95 और पिता का नाम गृहपति यज्ञदत्त वर्णित है, जबकि भीम ने नायिका का नाम विषया देकर उसे विनयसागर राजा के प्रधान मतिसागर की पुत्री कहा है ।2 सुमति ने इस नायिका का नाम त्रिलोचना दिया है और उसके पिता का नाम बंधुदत्त । 5. अगड़दत्त का विवाह __ अगड़दत्त द्वारा चोर की खोज एवं मदमस्त हाथी को अपने वश में कर लेने के पश्चात् प्रायः सभी रूपान्तरों में राजा की पुत्री का विवाह अगड़दत्त के साथ होना वर्णित है। किन्तु कुशललाभ ने इस विवाह के पश्चात् मदनमंजरी की धाय को अगड़दत्त के पास भिजवाकर उसे मदनमंजरीके साथ विवाह का स्मरण भी करवाया है। कशललाभ ने राजा की पुत्री के नाम का उल्लेख नहीं किया है, पर नेमिचन्द और सुमति ने पुत्री का नाम क्रमशः कमलसेना तथा कनकसुन्दरी दिया है। 'उत्तराध्ययन वृत्ति' में वर्णित अगड़दत्त की कथा, सुमति द्वारा विरचित अगड़दत्त रास कुशललाभ कृत अगड़दत्तरास में वीरमती भुजंगम चोर की बहन का नाम है। 6. अभंगसेन का वध कुशललाभ ने “अगड़दत्त रास” में चम्पानगरी से लौटते हुए मार्ग की अन्य कठिनाइयों के साथ अगड़दत्त द्वारा उसके पिता के हत्यारे अभंगसेन (सुभट) के वध का उल्लेख किया है । 10 यह प्रसंग अन्य कथारूपों में नहीं मिलता । 1. डॉ. के. सी. जैन - प्राकृत जैन कथा साहित्य, पृ.3 2. रा.प्रा. वि. प्र, जोधपुर ग्रं.27233, अगड़दत्त रास 3. पुहतउ वनह मंझारि, दीठी रंभ त्रिलोचना ॥22 ।। वंधुदत्त विवहारीउ, ते माहरउ लात ।।25 ।। -रा. प्रा. वि.प्र., जोधपुर, ग्रं. 1124 (अगड़दत्त मुनि चौपई) 4. भण्डारकर प्रा. वि. मंदिर, पूना, ग्रं.605, चौ. 135-136 5. डॉ. के. सी. जैन, प्राकृत जैन कथा साहित्य, पृ. 170, (उत्त. वृत्ति) 6. रा.प्रा. वि.प्र., जोधपुर, ग्रं.1124 7. डॉ. के. सी. जैन, प्राकृत जैन कथा - साहित्य, पृ. 170 8. रा. प्रा. वि. प्र., जोधपुर, ग्रं.1124, चौ.50 9. भण्डारकर प्राच्यविद्या मंदिर, पूना, यं.605, चौ.94 10. वही, चौ.235, 237

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