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जैन-साहित्य में अगड़दत्त कथा-परम्परा एवं कुशललाभ कृत अगड़दत्तरास
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पश्चात् अगड़दत्त भी भुजंगम चोर के पास दीक्षित हुआ और नवम् गवाक्ष को प्राप्त कर शिवपुरी पहुंचा।
इस प्रकार कुशललाभ कृत "अगड़दत्त रास" प्राकृत-भाषा में लिखित “अगड़दत्त चरित और 16 वीं शताब्दी में रचित भीमकृत अगड़दत्त रास की ही परम्परा में विकसित रूप है । अतः इसकी तुलना वसुदेव हिण्डी, नेमिचन्द्र रचित उत्तराध्ययन टीका, भीमकृत “अगड़दत्त रास” तथा सुमति के अगड़दत्त मुनि चौपई आदि पूर्ववर्ती कृतियों में वर्णित कथाओं से निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत की जा सकती हैं। 1. अगड़दत्त का परिचय
कुशललाभ ने स्वरचित रास में अगड़दत्त को बसन्तपुर के सेनापति शूरसेन का पुत्र कहा है। जबकि वासुदेव हिण्डी में वह उज्जयिनी के अमोधरथ सारथी का पुत्र कहा गया है । नेमिचन्द और सुमति क्रमशः शंखपुर के राजा सुन्दर अथवा सुरसुन्दर का पुत्र घोषित करते हैं, तो भीमकृत अगड़दत्त रास में वह चम्पानगरी के राजा वीरसेन का पुत्र कहा गया है । वसुदेवहिण्डी, सुमतिकृत अगड़दत्त मुनि चौपई
और कुशललाभ कृत अगड़दत्त रास में उसकी माता के विषय में कहीं कुछ भी नहीं कहा गया है, जबकि नेमिचन्द उसकी माता का नाम सुलसा देता है और भीम वीरमती ।।
1. बसन्तपुर सेनापति जेह, सूरसेन नंद नंदन एक । 1 चौ.44
- भण्डारकर प्राच्यविद्या मंदिर, पूना, ग्रं.605 2. डॉ.जे. सी. जैन प्राकृत जैन कथा-साहित्य, पृ.13, 169 3. वही, पृ. 170 4. संषपुरी नगरी छई किसी। तिणी नयरी सुरसुन्दर राई । अगड़दत्त तसु दीधउ नाम ॥ चौ.
9-11 ॥ -राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, ग्रं.1124 5. भरथषेत्र महीयलि माणियइ, चंपावह नगरी जाणीयह।
वीरसेन नामई बलवंत, राजा राज करइ जयवंत ॥29 ॥
दीउड बालक अति अभिराम, अगड़दत्त तसु दीधउ नाम ॥32 ।।
-राज. प्रा. वि.प्र., जोधपुर, ग्रं. 27233 6. डॉ. जे. सी. जैन - प्राकृत जैन साहित्य, पृ. 13 7. बीरमति धरिराणी इसी, रूपिइ रंजावे डरिवसि ॥24 ।।।
--रा. प्रा. वि.प्र., जोधपुर, ग्रं.27233, चौ.41-43