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तेरापंथ : रचनाकार और रचनाएं
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मनि वृतान्तों से सम्बन्धित अनेक श्रेष्ठ रचनाओं का सृजन किया। इनमें से एक महत्वपूर्ण राजस्थानी कृति है “झीणी रचना" । कृति का शीर्षक ही इस बात को प्रमाणित करता है कि इसमें जैन धर्म से सम्बन्धित “तेरापंथ" के झीने (सूक्ष्म) तत्वों का विवेचन किया गया है। आलोच्य रचना में 22 गीत संकलित हैं। सभी की विषय-वस्तु सैद्धान्तिक है । तेरापंथ के अनुसार इन गीतों में नौ पदार्थों (जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवरा, निर्जरा, बंध और मोक्ष) तथा छह द्रव्य (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकोशास्तिकाय, काल, पुद्गलास्तिकाय, और जीवास्तिकाय) का अति सरल भाषा में वर्णन प्रस्तुत हैं । उदय, उपराम, क्षय और क्षयोपशम-निष्पन्न किन-किन कर्मों का होता है, इस प्रश्न का सहज भाषा में कवि ने इस प्रकार समाधान किया
"उदय-निपन कर्म आठनो, उपशम-निपन एक सार।
खायक-निपन आठां तणो, खयोपराम निपन च्यार ॥1 जयाचार्य ने इसकी रचना वि.सं. 1912 से 1916 के बीच की। यह तथ्य कई ढालों के अन्त में दिये गये रचनाकाल के आधार पर ज्ञात होता है।2
इन ढालों के उपरान्त इस कृति की विदुषी संपादिका साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा जी ने जयाचार्य निर्मित झीणोज्ञान, अणुव्रत ना भांगा, तात्विक ढालां का सम्पादित रूप भी प्रस्तुत किया है। 4. अमर-गाथा
जयाचार्य की रचनाओं का एक अमूल्य संकलन “अमर गाथा" शीर्षक से भी प्रकाशित हआ है। इसका संपादन मुनि नवरत्नमल, मुनि मधुकर, साध्वी कल्पलता, साध्वी जिनरेखा और श्रीचंद रामपुरियाजी ने किया है।
इस संकलन में कवि श्री जयाचार्य की चौदह रचनाएं संपादित हैं-सतजुगी चरित, हेम नबरसौ, हेम चौढालियो, सरुप नवरसो, सरुपविलास, भीमविलास, मोतीजी
1. ढाल 1/32; 5/43, 54; 10/40, 106; 12/10, 119; 13/90, 140; 16/13, 157;
18/12, 170; 22/50, 207 2. उदय निष्पन्न भाव आठों कर्मों का, उपशम निष्पन्न भाव : एक मोहनीय कर्म का, क्षय निष्पन्न भाव आठों कर्मों का और क्षयोपशम निष्पन्न भाव चार घात्य कर्मों का होता है
-ढाल 3, दूहा 3