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चरित्र नायक सुदर्शन की भार्या मनोरमा भी शील-सौंदर्य, सती और श्रावक व्रत से परिपूर्ण हैं । 2 शील धर्म की अभिव्यक्ति करने वाली इस जैन कृति का अंगीरस वीर है । कवि ने यथा-प्रसंग शृंगार, वीभत्स, शान्त, रौद्र रसों का प्रयोग कर अपने कथ्य को प्रभावोत्पादक बनाया है । इस उद्देश्य हेतु उसने सुन्दर सूक्तियों का भी प्रयोग किया है, यथा
1.
कायर सुण हुवै सूरमा, सूरा पिण होय अति ही अडोल । सुदर्शन गुण सांभळी, पाले शील अमोल ॥ सुदर्शन शील पालने गयो पंचमी गति प्रधान ||
1. विद्या अस वर नार संपद हेह शरीर सुख ।
2.
2.
मांग्या मिले नहीं च्यार पूर्व सकृत कीधा विना (अध्याय 2, छन्द 1)
हिवे नारी जात छै तेहनो कदे न करूं विश्वास | (ढाल 5, दूहा-6)
2. द्रोपदी रो बखाण
यह रचना भी आचार्य भीषणजी की है । महाभारत के द्रोपदी आख्यान से भिन्न जैन- आचार संहिता के अनुरूप कवि ने द्रोपदी के पूर्व जन्म, द्रोपदी के जन्म, पांच पांडवों से विवाह, नारद का तिरस्कार जनित प्रतिरोध, द्रोपदी- अपहरण, युद्ध, द्रोपदी की वापसी, द्रोपदी की संयम - तपस्या और देह त्याग, पंच- पाण्डवों की दीक्षा आदि घटनाओं के माध्यम से इस की कथा प्रस्तुत की है ।
राजस्थानी जैन साहित्य
कवि ने इन सभी घटनाओं का चित्रण 33 ढालों में किया है। अभिव्यंजना अति सरल, सहज एवं आकर्षक हैं । रचना में वर्णित घटनाएं नैतिक मानदण्डों और आदर्शों की पुनर्स्थापना करती । साथ ही रचना सामयिकता प्रदान करने में भी सहायक होती है | अतः उद्देश्य और प्रस्तुति की दृष्टि से यह रचना महती है ।
3. झीणी चरचा -
तेरापंथ के छठे और प्रबुद्ध आचार्य श्री जयाचार्य ने तेरापंथ के धर्म-दर्शन एवं
प्रथम ढाल, दूहा 5-6
सती मनोरमा नार
पाले श्रावक नां व्रत चार,
- ढाल 2, दूहा 18