Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 110
________________ 10 वाचक कुशललाभ का जैन साहित्य को योगदान जैन साहित्य की प्रायः सभी शैलियों को ग्रहण कर वर्तमान हिन्दी साहित्य समृद्ध हुआ है। हेमचन्द्राचार्य (अभिधान चिंतामणि) स्वयंभू (पउम चरिउ, रिट्ठणेमि चरिउ, स्वयंभू छंद), देवसेन (श्रावकाचार), शालिभद्र (भरतेश्वर बाहुबली रास), आसगु (चन्दनबाला रास), जिनधर्म सूरि (रेवतंगीरि रास), सुमति गणि (नेमिनाथ रास), उदयवंत (गौतमरासा), विद्धण (ज्ञानपंचमी चौपई), दयासागर सूरि (धर्मदत्त चरित), ईश्वर सूरि (ललितांग चरित), ठकरसी (कृपण चरित्र), विद्याभूषण सूरि (भविष्यदत्त रास), रायमल (हनुमन्त चरित्र), जिनदास (जम्बूचरित्र), कल्याणदेव (देवराज बच्छराज चौपई), नन्द (यशोधर चरित), कर्मचंद (मृगावती चौपई), खुशालचन्द (हरिवंश पुराण), भूधरदास (पार्श्वपुराण, जैनशतक), बनारसीदास (अर्द्धकथानक, नाममाला), भैया भगवतीदास (चैतनकर्म चरित, मधुबिन्दुक चौपई) आदि जैन साहित्य की प्रमुख मणियां है। इन मनीषियों ने जहां सुन्दर चरित काव्यों का निर्माण किया वहीं श्रेष्ठ शास्त्रीय एवं लोक-ढालों पर आधारित गीतियों का भी सृजन किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिन्दी साहित्य जैन साहित्य का ही सुफल है। __ जैन साहित्य की इन्हीं काव्यशैलियों को परिष्कृत और पल्लवित करने वाला एक अविस्मरणीय नाम है-वाचक कुशललाभ का। कुशललाभ ने अपने जीवन काल में माधवानल कामकंदला चौपई (वि.सं. 1616), ढोला-मारवणी चौपई (वि.सं.1617), जिनपालित जिनरक्षित, संधिगाथा (वि.सं. 1621), तेजसार रास चौपाई (वि.सं.1624), अगड़दत्तरास (वि.सं.1625), पार्श्वनाथ दशभव स्तवन (वि.सं. 1621), 1. कोष्ठक में सम्बन्धित कवियों की मात्र बहुचर्चित रचनाओं का ही नामोल्लेख किया गया है।

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