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राजस्थानी जैन साहित्य
पत्नी को लेकर उसके साथ अग्नि-प्रवेश करने लगा। विद्याधर ने नारी के लिए मरने को व्यर्थ बताया, पर अगड़दत्त ने इसे स्वीकार नहीं किया, अपितु विद्याधर से उसे जीवित कर देने की प्रार्थना करने लगा।
विद्याधर ने मंत्रप्रयोग कर मदनमंजरी को पनर्जीवित किया। तत्पश्चात् मदनमंजरी के परपुरुष के साथ संभोग की समस्त आंखों देखी घटना कुमार को सुना दी। कुमार ने विद्याधर को नवसरहार भेंट कर विदा किया।
विद्याधर के जाने के बाद मदनमंजरी ने कुंवर के समीप के देहरे में चलकर विश्राम करने का निवेदन किया। देहरे में पहुंचकर मदनमंजरी ने वहां उसे प्रकाश करने के लिए कहा। अगड़दत्त आग की खोज में निकला। इसी अवधि में कुंवरी की भेंट तीन चोरों से हुई। परिचयोपरान्त मदनमंजरी ने उनसे अपने पति की हत्या करके उसे अपने साथ ले चलने का आग्रह किया । सशंकित चोरों ने पहले तो इन्कार किया पर बाद मे उन्होंने स्वीकृति दे दी । मदनमंजरी ने चोरों के दीपक को प्रज्वलित किया। अगड़दत्त के लौटने पर देहरे में प्रकाश देखकर मदनमंजरी से उसके विषय में पूछताछ की ! मदनमंजरी ने उसे कुंवर द्वारा लाई गई आग का प्रतिबिम्ब कह कर उसके संदेह को दूर किया । कुमार ने अपना खड़ग उसे दिया और स्वयं अग्नि प्रज्वलित करने लगा। मदनमंजरी ने उसका वध करने के लिये उस पर खड़ग प्रहार किया, पर खड्ग दूर जा गिरा । कुमार की पृच्छ। पर उसने उत्तर दिया कि उसने खड्ग को उल्टा पकड़ लिया था, अतः वह गिर गया।
___ चोर इस घटना को देखकर बहुत भयभीत हुए। वे सोचने लगे कि संसार स्वार्थी है। पत्नी भी स्वार्थवश अपने पति की हत्या कर सकती है । इस दृश्य से प्राप्त सत्य ने उन्हें विरागी बना दिया। वे चले गये। मार्ग में उन्हें एक मुनि मिला। उन्होंने उससे दीक्षा ली।
अगड़दत्त पत्नी सहित घर पहुंचा और पुत्रवान हुआ । एक दिन अगड़दत्त अपने प्रधान के साथ घूमता हुआ उस स्थान पर पहुंचा, जहां भुजंगम नामक चोर साथी चोरों सहित तपस्या कर रहा था ! अगड़दत ने उनके वैराग्य का कारण पूछा तो उसने बताया कि यह अगड़दत्त का उपकार है । अगड़दत्त ने उस अगड़दत्त का परिचय पूछा तो चोर ने मदनमंजरी के दुराचरण, पर-पुरुष के साथ संभोग एवं देहरे में घटित सारी कहानी उसे सुना दी।
यति चोर से अपनी ही कहानी सुनकर कुंवर दुखी हुआ। उसने समझ लिया कि त्रिया चरित्र अत्यन्त कुटिल है। उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इसके