________________
90
.
राजस्थानी जैन साहित्य
इनमें से कुशललाभ द्वारा रचित “अगड़दत्त रास” की संक्षिप्त कथा यहां प्रस्तुत की जाती है-बसन्तपुर में राजा भीमसेन राज करता था। उसकी पटरानी का नाम सोमसुन्दरी था । सूरसेन नाम का उसका एक बलशाली सामन्त था, जिसके अगड़दत्त नाम का एक रूपवान पुत्र था। सूरसेन की ख्याति सुनकर एक सुभट वहां आया। राजा की अनुमति से सुभट और सूरसेन में युद्ध हुआ, जिसमें सूरसेन मारा गया। राजा ने सुभट को अपना सेनापति बनाया और उसका नाम अभंगसेन रखा।
पिता की मृत्यु के पश्चात् अगड़दत्त की माता ने अत्यन्त दुःखी अवस्था में उसका पालन-पोषण किया। पति की इच्छानुसार उस पुत्र को आठ वर्ष की आयु में चम्पापुरी के ब्राह्मण सोमदत्त के पास अध्ययन के लिए भेज दिया। चम्पापुरी पहुंचकर अगड़दत्त ने सोमदत्त को सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
सोमदत्त ने उसकी व्यवस्था एक व्यवहारी के घर कर दी। अगड़दत्त शिक्षा ग्रहण करने लगा। एक दिन वाटिका के पास गवाक्ष में बैठी व्यवहारी की रुपवान कन्या मदनमंजरी को अगड़दत्त ने देखा । कुंवर अगड़दत्त एक दिन वाटिका में सो रहा था तभी मदनमंजरी गवाक्ष से वृक्ष की डालियों पर होती हुई उसके पास आई
और अपना प्रणय निवेदन किया। मदनमंजरी के आग्रह पर उसने उसका ठीक से अध्ययन परीक्षण कर उसके साथ विवाह करने का उसे वचन दिया।
सोमदत्त इस घटना से परिचित था। अगड़दत्त ने अध्ययन के उपरान्त अपने घर लौटने की आज्ञा मांगी । गुरु कुंवर अगड़दत्त का मदनमंजरी से विवाह का प्रस्ताव लेकर राजा के पास पहुंचा। परिचय प्राप्त करके राजा ने उसे सम्मान दिया। इसी समय चोरों के उत्पात से भयभीत नगर के महाजनों ने राजा से अपना दुख-दर्द सुनाया। राजा ने चोरों को पकड़ने के लिए बीड़ा फिराया और चोर को पकड़कर लाने वाले को सवा लाख रुपये का पुरस्कार भी देने की घोषणा की। अगड़दत्त ने बीड़ा झेल लिया तथा सात दिन में चोर को पकड़कर लाने का वचन दिया।
वेश्याओं, जुआरियों आदि के स्थानों पर चोर की खोज में उसने छह दिन बिता दिये पर चोर नहीं मिला । सातवें दिन चिंतितमना वह एक वृक्ष के नीचे बैठा था, तभी उसने एक योगी को जाते हुए देखा। योगी की पृच्छा पर उसने बताया कि वह एक जुआरी है और सारा धन जुए में हार चुका है। अतः वह चोरी करने को निकला है। उत्तर सुनकर योगी ने उसे अपने साथ ले लिया। कुंवर ने भी अनुमान लगा लिया कि यही चोर है, अतः वह उसके निर्देशानुसार ही कार्य करने लगा।