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जैन-साहित्य में अगड़दत्त कथा-परम्परा एवं कुशललाभ कृत अगड़दत्तरास
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में, सं. 1129 में नेमिचन्द रचित उत्तराध्ययन टीका में 328 प्राकृत पद्यों में दी गई है। श्री विनयभक्ति, सुन्दर भक्ति, सुन्दरचरण ग्रन्थमला की ओर से संस्कृत में किसी अज्ञात कवि कृत "अगड़दत्त-चरित्र" 334 श्लोकों में प्रकाशित हुआ है । पर, रचना-संवत् के अभाव में इसकी प्राचीनता का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
__ अस्तु, इस कथा की परम्परा का आरंभ 16 वीं शताब्दी में लिखित गुजराती और राजस्थानी भाषा के अगड़दत्त-सम्बन्धित कथा साहित्य से माना जा सकता है, जिसकी अविच्छिन्न धारा 18 वीं शती के अन्त तक अबाध गति से बहती हुई हमें स्पष्ट दिखायी देती है। अगड़दत्त सम्बन्धी अद्यावधि प्राप्त काव्यों की सूची इस प्रकार है
अगड़दत्तरास (सं.1584 आषाढ वदी 14 शनिवार) भीमकृत 2. अगड़दत्त मुनि चौपई (सं.1601) सुमति ।।
अगड़दत्त रास (सं. 1625 का. सु. 15 गुरुवार)- कुशललाभ ।' 4. अगड़दत्त प्रबन्ध (सं.1666) - श्री सुन्दर ।
अगड़दत्त चौपई (सं.1670)-क्षेमकलश ।। 6 अगड़दत्त रास (र.सं.1679) - ललित कीर्ति ।।
अगड़दत्त रास (र.सं. 1685) - स्थान सागर ।'
अगड़दत्त रास (अपूर्ण, वि.सं.17 वीं शताब्दी)- गुणविनय ।8 9. अगड़दत्त चौपई (र.स. 1703) - पुण्य-निधान । 10. अगड़दत्त रास-कल्याण सागर ।10 11. अगड़दत्त ऋषि चौपई (र.सं. 1787) - शान्ति सौभाग्य ।11 12. अगड़दत्त रास (अपूर्ण)12
1. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. लि. ग्रं.27233 2. वही, ग्रंथांक 1124 3. (क) भण्डारकर प्राच्यविद्या मन्दिर, पूना, ह. लि. यं.605
(ख) प्राच्यविद्या मन्दिर, बड़ौदा, ह. लि. ग्रं. 14289 4-12.वरदा, वर्ष 12, अंक 3, पृ.2