Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 23
________________ 121 (13) मुकतक-काव्य : राजस्थानी जैन मुक्तक काव्य का अध्ययन धार्मिक, नीतिपरक एवं इतर धार्मिक शीर्षकों में किया जा सकता है । धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत जैन कवियों ने गीत, कवित्त, तीर्थमाला, संघवर्णन, पूजा, विनती, चैत्य, परिपाटी, मातृका, नमस्कार, परभाति, स्तुति स्तोत्र, मूंदड़ी, सज्झाय, स्तवन, निर्वाण, पूजा, छन्द, चौबीसी, छत्तीसी, शतक, हजारा, आदि नामों से की है। इन रचनाओ में तीर्थंकरों, जैन महापुरुषों, साधुओं, सतियों, तीर्थों आदि के गुणों का वर्णन किया जाता है । दुर्गुणों के त्याग और सद्गुणों के ग्रहण करने के गीत तथा आध्यात्मिक गीत भी धार्मिक मुक्तक काव्य की विषय-वस्तु है । कुछ उल्लेखनीय रचनाएं हैं- चौबीस जिनस्तवन, अजितनाथ स्तवन, विनती, अष्टापद तीर्थ बावनी, चतुरविंशती जिनस्तवन, अजितनाथ विनती, पंचतीर्थकर नमस्कारस्तोत्र, महावीर वीनती, नगरकोट- साहित्य परिपाटी, चैत्य परिपाटी, शान्तिनाथ वीत (जयसागर ) 1, स्नात्रपूजा, थावच्याकुमार रास (देपाल) 2, नेमिगीत (मतिशेखर) 3 गुणरत्नाकर - छंद, ईलातीपुत्र - सज्झाय, आदिनाथ शंत्रुजय स्तवन, ( सहजसुन्दर) 4, साधुवंदना, उपदेश रहस्य गीत, वीतरागस्तवन ढाल, आगमछत्रीशी, एषणाशतक, शंत्रुजय स्तोत्र (पार्श्व सूरि) 5, स्तंभन पार्श्वनाथ स्तवन, गोड़ी-पार्श्वनाथ छंद, पूज्यवाहण गीत, नवकार छंद (कुशललाभ), महावीर पंचकल्याण स्तवन, मनभमरागीत (मालदेव), सोलहस्वप्न सज्झाय (हीरकलश) इत्यादि । राजस्थानी जैन साहित्य नीतिपरक रचनाएं यदि जैन साहित्य को उपदेश, ज्ञान और नीतिपरक भी कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी । कारण, जैन कवियों का मुख्य उद्देश्य धार्मिक प्रचार करना था । अपने 1. शोधपत्रिका, भाग 9, अंक 1, दिस. 1957 ई. 2. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, भाग 3, पृ. 446 3. जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृ. 768 4. जैन गुर्जर कविओ, भाग 1, पृ. 120, भाग 3, पृ. 557 (1992) 5. वही, पृ. 139, भाग 3, पृ. 586 6. डा.मनमोहन स्वरूप माथुर—– कुशललाभ व्यक्तित्व और कृतित्व, पृ. 41, मंथन पब्लिकेशन, रोहतक 7. 8. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृ. 98-100 शोध पत्रिका, भाग 7, अंक 4

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