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जैन देवियां एवं तत्सम्बन्धी जैन रचनाएं
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द्वारा उपयुक्त युक्ति जानना भी कवि कुशललाभ की मौलिक कल्पना है। 7. विभिन्न देवताओं की शक्तियों से संपरित हो महामाई दर्गा सातसी की देवी
ने शुंभ से विषकन्या के रूप में वरण करके महान् दैत्य रक्तबीज़ को उसी के स्वामी शुंभ की आज्ञा से स्वयं ने मारा, जबकि “मार्केण्डेय पुराण" में देवी द्वारा रक्तबीज के संहार पर शुंभ-निशुंभ ने उस पर प्रहार किया। "मार्कण्डेय-पुराण" की भांति कशललाभ ने दर्गा देवी की फलस्तति एवं राजा सुरथ और वैश्य को देवी द्वारा प्रदत्त वरदानों की कथा का अन्त में कोई उल्लेख नहीं किया है। इसकी अपेक्षा 24 भुजंगी छंदों में देवी के विभिन्न रूपों की स्तुति की है। इससे जहां कथा संक्षिप्त हुई है, वहीं नवीनता और रोचकता का भी सफल निर्वाह हो सका है।
प्राप्त दोनों प्रतियों में कवि अथवा लिपिकार ने रचनाकार सम्बन्धी कोई उल्लेख नहीं किया है। इनमें से एक प्रति त्रुटित है, पर लिपि सुवाच्य है, जबकि द्वितीय प्रति2 पूर्ण है। दोनों में पाठभेद तनिक भी नहीं है। पद्मावती छंद
जैन कवि हेम ने इसकी रचना की है, जिसका संपादन “विश्वम्भरा” त्रैमासिक पत्रिका (वर्ष 8, अंक 1, 1973) में प्रकाशित किया जा चुका है। इसमें कुल दस छन्द हैं । “कळस' शीर्षक छंद में कवि ने जैन तीर्थकरों में तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की अधिष्ठात्री देवी पद्मावती के महत्व को स्पष्ट करते हुए अपना नामोल्लेख किया है । इससे अधिक रचना में कृतिकार का परिचय नहीं मिलता। किन्तु काल की दृष्टि से
1. अनूप संस्कृत लाइब्रेरी,बीकानेर, हन. 48 2. वही, ग्रं.68 (घ) 3. मनमोहन स्वरूप माथुर-जैन देवियां और हेमकृत पदमावती छंद पृ.43-46 4. अतिसय वंत अपार, सदा जुग साची देवी
समकित पाळे सुद्ध जिन सासन सेवी अधो मध्य आकास रास रमती अमरी सेवक जिन साधार सार करे समरी पुफ्फावती पास प्रति मस्तक धारणी । कवि हेम कहे हरष सूं पदमावती पूजे जयकारणी ॥
-विश्वम्भरा, बीकानेर, वर्ष 8, अंक 1, पृ.46