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राजस्थानी जैन साहित्य
की टीका है । इसीलिये उदयचंद भंडारी ने इसे साहित्यसार भाषा टीका भी कहा है। राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा की यह अत्यन्त सुन्दर काव्यशास्त्रीय रचना है।
__ संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजस्थानी जैन कवियों ने अपनी परम्परा के अनुसार चरित काव्य ही अधिक रचे किन्तु काव्य की समीक्षार्थ लक्षणों के निर्माणक मूल्यों की स्थापना हेतु उन्होंने तत्सम्बन्धी लक्षण ग्रन्थों का भी निर्माण किया। इन जैन लक्षण ग्रन्थों में संस्कृत आचार्यों की सी गूढता की अपेक्षा सहजता एवं ग्राह्यता अधिक है। वैसे भाषा राजस्थानी है किन्तु परवर्ती लक्षण विवेचक रचनाओं में ब्रज अथवा राजस्थानी के पिंगल रूप का प्रभाव अधिक लक्षित है।