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राजस्थानी जैन साहित्य
इसी समय उदयचंद भंडारी ने नागौर में ज्ञान-प्रदीपिका और छंद प्रबन्ध तथा डीडवाना में शनीश्चरजी की कथा का प्रणयन किया। इन रचनाओं के अतिरिक्त कवि की विविध विषयों पर लिखित लगभग 25 रचनाएं और मिलती हैं, जिनमें उल्लेखनीय रचनाएं हैं—साहित्यसार, छन्द-विभूषण, ब्रह्मविलास, आत्मज्ञान आदि ।
इन जैन रचनाकारों के अतिरिक्त नागौर जनपद के निम्नलिखित कवि भी उल्लेखनीय हैं। यद्यपि इनका निजी परिचय अधिक प्राप्त नहीं होता, किन्तु इनकी रचनाओं में यथा प्रसंग नागौर जनपद से सम्बद्ध राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास के स्तोत्र अवश्य उजागर हो जाते हैं14. चौथमल
इनका जन्म वि.सं. 1800 में भंवाल गांव में हुआ था। झामड़ गोत्रीय रामचंद्र इनके पिता और गुमान बाई माता थी। मुनि अमीचंद के पास वि.सं. 1810 में इन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की। वि.सं. 1880 में मेड़ता में इनका स्वर्गवास हुआ। चौथमल जी ने राजस्थानी में अच्छी काव्य रचनाएं की। अपने जीवनकाल में नागौर-मण्डल में निवास करते हुए कवि ने निम्नलिखित रचनाएं निर्मित की
महाभारत (ढालसागर-ढाल 163, वि.सं. 1856, नागौर), श्रीपालचरित्र (वि.सं.1862, पीपाड़), धनावा सेठ री ढाल (जैतारण), रहनेमी राजमती ढाल (वि.सं. 1862, पीपाड़), चौदह श्रोतावां री ढाल (वि.सं. 1852, पीपाड़), तामलीतापस चरित्र . (जैतारण), सनतकुमार चौढालियो (पीपाड़)। 15. रत्नचंद्र
ये नागौर निवासी गंगाराम जी सरस्वती के दत्तक पुत्र थे। पूज्य गुमानचंद जी के उपदेशों से वैराग्य धारण कर वि.सं. 1848 में मण्डोर में दीक्षा ग्रहण की। इन्हें आचार्य पद वि.सं. 1882 में मिला और वि.सं. 1902 की जेठ सुदि चौदस को जोधपुर में इनका देहान्त हुआ। रत्नचंद्र जी का जन्म वि.सं. 1834 में कुढ गांव में हुआ। वि.सं. 1852-1891 तक लिखित कवि की लगभग दस रचनाएं मिली है। इनमें से गज सुकुमाल चरित्र की रचना इन्होंने नागौर में वि.सं. 1875 में की। यह एक लघु रचना है।
16. सबळदास
सबलदास आसकरण जी के शिष्य और पट्टधर थे। पोकरण के लूणिया आणंदराम का पनी मन्दम्वाई की कक्षि ये इनका जन्मवि.मं. 1829 म हुआ। बारह