Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 93
________________ 82 के शासनकाल में वि.सं. 1776 में कुचेरा (नागौर) नामक ग्राम में की । रचना का मूल विषय दुर्गासप्तशती पर आधारित भगवती की आराधना है । कवि ने यथाप्रसंग महाराजा अजीतसिंह और उनके शासन प्रबन्ध का भी वर्णन किया है । 9. जयमल्ल' - -- लांबिया ग्राम के मोहता मोहनदास के ये पुत्र थे । एक बार जयमल्ल व्यापार के लिये मेड़ता आये । वहां उनका ऋषि भूधर से मिलना हुआ। उनके उपदेश से वे बहुत प्रभावित हुए । वि.सं. 1788 मिगसर वदी 2 को 22 वर्ष की आयु में मेड़ता में ही उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली। वि.सं. 1852 में वे नागौर आये । व्याधि के कारण यहीं उन्होंने वि.सं. 1853 में संथारा किया। अपने जीवनकाल में उन्होंने नागौर मण्डल के विभिन्न स्थानों में रहकर खंधक ऋषि चौपई (वि.सं. 1811, लाडनूं), वीश वीहरमान स्तवन (वि.सं. 1824, मेड़ता), देवदत्ता चौपई (वि.सं. 1825, नागौर) रचनाओं का निर्माण किया, जिनमें यहां के सांस्कृतिक जीवन का अच्छा चित्रण हुआ है । राजस्थानी जैन साहित्य 10. ज्ञानसागर ज्ञानसागर ने नागौर में रहकर दो रचनाएं लिखी - इलायची कुमार रास' और आषाढ़ भूतिरास । प्रथम रचना का सृजनकाल वि.सं. 1829 लिखा मिलता हैं । इसका विषय जैन मुनि इलायची कुमार की दीक्षा से सम्बद्ध हैं। दूसरी रचना में भी शील का उपदेश कथन है । दोनों ही रचनाओं की पुष्पिकाओं से कवि तपागच्छीय यति सिद्ध होता है । 1 11. रायचंद्र ये जयमल जी के शिष्य और पट्टधर थे । अपने गुरु की भांति ही इन्होंने लगभग पचास रचनाओं का निर्माण किया । नागौर मण्डल के विभिन्न स्थानों में रचित इनकी निम्नलिखित रचनाएं मिलती है। इनकी पुष्पिकाओं में कवि का नाम ऋषि रायचन्द भी मिलता है। संभव है इन्हें ऋषि की उपाधि प्राप्त हो 1. 2. 3. 4. सं. डॉ. नारायणसिंह भाटी परम्परा, राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल, अंक, पृ. 121-122 राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. लि. ग्रं. 2045 वही, ग्रं. 3553 (6) वही, ग्रं. 907 -

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