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नागौर जनपद के प्रमुख जैन कवि और उनकी रचनाओं में चित्रित ऐतिहासिक संदर्भ
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कवि की “शत्रुजय यात्रा रास” नामक रचना में “तिल्ली रा गीत री ढाल" के संदर्भ में कहा गया हैं कि यह देशी रागिनी मेड़ता नगर में काफी प्रसिद्ध थी। इससे स्पष्ट है कि मध्यकालीन नागौरजनपद में संगीत की अनेक गायकियां प्रचलित थीं। 5. हर्षगणि
जिनचंद्र सूरि के शिष्य हर्षगणि नागौर तपागच्छ के प्रमुख कवि हैं। वि.सं. 1673 में इन्होंने मेड़ता में पंचमी तप गर्भित “नेमिजिनवर स्तवन" की रचना की। कवि की यह एक लघु रचना है, जिसमें जैनियों के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की स्तुति की गई है। 6. सुमतिहंस
ये बेगड़गच्छ के जैन कवि थे। जिनहर्ष सूरि के ये शिष्य थे। नागौर मण्डल में रहकर आपने मेघकुमार चौपई (वि.सं. 1686, पीपाड़), चौबीसी (वि. सं. 1697, मेड़ता), वैदर्भी चौपई (वि.सं.1713, जयतारण), रात्रिभोजन चौपई (वि.सं. 1723, जयतारण) आदि काव्य रचनाओं का निर्माण किया। 7. कमलहर्ष
ये जिनराज सूरि के शिष्य मानविजय जी के शिष्य थे। इनका “जिनराज सूरि का गीत" ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में संगृहीत है। इन्होंने “पाण्डवरास” नामक रचना का निर्माण मेड़ता में रहकर वि.सं. 1728 की आसोज वदि दूज को किया। इनके अलावा कमलहर्ष की अन्य रचनाएं धन्ना चौपई (वि.सं.1725 आसोज सुदि 6, सोजत), अंजना चौपई (वि.सं. 1733 भादवा सुदि 2), रात्रि भोजन चौपई (वि.सं.1750, लूणकरणसर), आदिनाथ चौढालियो एवं दशवैकालिक सज्झाय हैं। 8. जयचंद्र यति
वचनिका त्रय में प्रसिद्ध रचना “माताजी री वचनिका" के रचयिता जयचंद्र यति भी नागौर के निवासी थे। वचनिका के अनुसार ये खरतरगच्छीय यति थे। कृति की पुष्पिका के अनुसार जयचंद्र यति ने इसकी रचना जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह 1. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. ग्रं. 12205(18) 2. सं. भंवरलाल नाहटा, पृ. 234-250 3. सं. भंवरलाल नाहटा, ऐ. जै. का. सं., पृ. 102