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नागौर जनपद के प्रमुख जैन कवि और उनकी रचनाओं में चित्रित ऐतिहासिक संदर्भ
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2. हीरकलश
हीरकलश खरतरगच्छीय हर्षप्रभ के शिष्य थे। ये नागौर मण्डल में काफी समय तक रहे। यहीं रहकर कवि ने जोइसहीर (ज्योतिष सार)', सात व्यसन गीत (वि.सं. 1622)2, आराधना चौपई (वि.सं. 1623)3, सिंघासन बत्तीसी (वि. सं. 1636, मेड़ता)4, शुद्ध समकित गीत आदि रचनाओं का निर्माण किया। जोइसहीर (वि.सं. 1621) कवि की एक महत्वपूर्ण रचना है। यह मूलतः प्राकृत भाषा की रचना है। हीरकलश ने इसका राजस्थानी रूपान्तर 905 पद्यों में वि.सं. 1657 में पूरा किया। साराभाई नवाब, अहमदाबाद की ओर से यह ग्रंथ प्रकाशित हो चुका है। हीरकलश के शिष्य हेमचंद्र थे। इन्होंने भी अनेक अच्छी काव्य रचनाये की। 3. हर्षकीर्ति
नागौरी तपागच्छ शाखा के आचार्य चन्द्रकीर्ति के ये शिष्य थे। हर्ष कीर्ति की रचनाओं और समकालीन घटनाओं के आधार पर इनका समय 16 वीं शताब्दी का अन्तिम एवं 17 वीं शताब्दी का प्रथम चरण सिद्ध होता है । कवि ने अपनी रचनाएं संस्कृत और राजस्थानी में लिखीं। इनकी उल्लेखनीय रचनाएं हैं-धातुपाठ, धातुतरंगिणी, सारस्वत दीपिका, वृहतशान्ति स्तोत्र टीका (वि.सं. 1655), जन्मपत्री पद्धति (वि.सं. 1660), सेटअनिटकारिका (वि.स. 1662), शारदीय नाममाला, सिंदूरप्रकरण टीका, कल्याणमंदिर टीका आदि।
हर्षकीर्ति की “धातुतरंगिणी” नामक कृति में तत्कालीन नागौर के इतिहास की झलक मिलती है। कवि ने अपनी भट्टारक परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा है कि यति पद्ममेरू के शिष्य पद्मसुंदर गणि द्वारा अकबर की सभा में किसी पंडित को पराजित कर पद्मसुंदर को सम्मानित किया गया। स्वयं हर्षकीर्ति को जोधपुर के राजा राव मालदेव से सम्मान मिला।
1. साहित्य संस्थान, उदयपुर - शोध पत्रिका, भाग-7, अंक-4 2. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, ह. ग्रं.2893(36), पत्र 70वां 3. साहित्य संस्थान उदयपुर, शोध पत्रिका, भाग-7, अंक-4 4. वही 5. रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर, इ. ग्रं. 2893(26), पत्र 60वां 6. डॉ. राजेन्द्रप्रकाश भटनागर - जैन आयुर्वेद का इतिहास, पृ. 118 (प्र.सं)