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राजस्थानी जैन साहित्य
अध्याय 3 : उडिंगल नाममाला, और
अध्याय 4 : गीत प्रकरण ।1 अलंकार आशय
जोधपुर निवासी उत्तमचंद भंडारी2 की रचना “अलंकार आशय” का राजस्थानी काव्यशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है । कवि ने इसकी रचना नागौर में वि.सं. 1857 में की। इसकी एक प्रति राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर में संगृहीत है । प्रति का लिपिकाल 19 वीं शताब्दी लिखा हुआ है । सम्पूर्ण रचना 146 पत्रों में प्रतिलिपित है, पर अंतिम पत्र अनुपलब्ध है। ग्रंथ के आरंभ में कवि ने अपने गुरु रूप में मुनि सागरचंद एवं कवि रामकरण का स्मरण करते हए विविध शब्दालंकार और अर्थालंकारों का सोदाहरण विवेचन किया है। विवेचन में राजस्थानी के साथ ब्रजभाषा के अनेक सुन्दर प्रयोग दर्शनीय हैं । प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत के सुंदर प्रयोगों ने भी आलोच्य ग्रंथ के शास्त्रीयत्व को द्विगुणित किया है। साहित्यसार
___ इसके रचयिता उत्तमचंद भंडारी के अनुज और काव्यशिष्य उदयचंद भंडारी है। उदयचंद भंडारी ने अपने अग्रज उत्तमचंद भंडारी के सानिध्य में छन्दप्रबन्ध', छन्दविभूषण, प्रस्तार-प्रबन्ध भाषा, शब्दार्थ-चन्द्रिका' नामरत्नमाला, रसनिवास, आदि काव्यशास्त्रीय रचनाओं का निर्माण किया। “साहित्य सार" इन्हीं रचनाओं में से शब्दार्थ चंद्रिका, दूषणदर्पण, रस निवास, छंद विभूषण का संग्रह है। कवि ने यह
1. डॉ. मनमोहन स्वरूप माथुर - कुशललाभ : व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व, पृ.98 2. कवि का अन्य लक्षण ग्रंथ है - छंदप्रकाश संवार्ता 3. ग्रंथांक 15089 - संग्रह राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर 4. राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर, हस्तलिखित ग्रंथ संख्या 13780(1) रचनाकाल
वि.सं. 1864 नागौर में 5. वही,ग्रं.13780, रचनाकाल वि.सं. 1875 6. वही, ग्रं.13780 (2), रचनाकाल वि. सं. 1879 7. वही, ग्रं. 13780, रचनाकाल वि. सं. 1890 8. वही, ग्रं. 13780(1), रचनाकाल वि. सं. 1899 9. वही, ग्रं.13780