________________
जैन देवियां एवं तत्सम्बन्धी जैन रचनाएं
बुध अनुसार विचार वर, सार धार संसार । भुगति छैह लाभै मुगति, पढ़ित्या बोह परिवार ।।”
61
" माताजी री वचनिका" कवि जयचन्द्र यति की श्रेष्ठ रचना है, जिसमें देवी की पौराणिक सनातन भक्ति के साथ जैन भक्ति का समावेश हुआ है। साथ ही कवि लाधव के साथ काव्य की समस्त विशेषताओं का सुन्दर समन्वय किया है ।
1
इन रचनाओं के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सभी जैन देवी - भक्ति सम्बन्धी रचनाओं की विषयवस्तु देवी दुर्गा के पौराणिक आख्यान मार्कण्डेय पुराण में वर्णित दुर्गा सप्तशती अथवा पूर्ववर्ती कवियों द्वारा निरूपित देवी के स्वरूप से संबद्ध है । अधिकांशतः रचनाओं में देवी के वैष्णव मान्यताओं के अनुरूप चित्रण हुआ है आरंभ में जैन शैली के अनुसार मंगलाचरण में गुरुवंदना, सरस्वती वंदना, कवि परम्परा आदि का परिचय देते हुए देवी के विविध नामों, उनके अनुसार उनके महत्व, निवास आदि का उल्लेख किया गया है । अन्त में किसी व्रत कथा के दृष्टान्त एवं पुष्पिका देते हुए रचनाओं का अन्त किया है।
इन वर्णनों में देवी के एक हजार आठ नामों से भी अधिक नामों का उल्लेख मिलता है । कुशललाभ की “महामाई दुर्गा सातसी ” और “जयचंद यति की” माताजी री वचनिका ऐसी ही रचनाएं हैं ।
किन्तु इन रचनाओं में वैष्णवी देवी नामावली के साथ ही जैन देवियों के नामों का तदनुरूप चित्रण हुआ है। तीर्थंकरों की शासन देवियों के रूप में जैन कवियों ने सर्वाधिक रूप से तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की शासन देवी पद्मावती का वर्णन किया है। जैन भक्ति ग्रंथों में पद्मावती को धरणेंद्र की पत्नी कहा गया है । इस संदर्भ में कहा गया है कि गृहस्थाश्रम में जब पार्श्वनाथ ने अपने शत्रु कमठ को तप करते हुए देखा तो उसके चारों ओर यज्ञ कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित थी । प्रज्वलित काष्ठ में एक नाग-नागिन जल रहे थे । जीवहत्या होते देख कर पार्श्वनाथ ने कमठ को उसकी मिथ्या भक्ति पर ललकारा और नाग- दम्पति को नवकारमंत्र द्वारा जीवित किया। यही . नाग-नागिन पार्श्वनाथ के आशीर्वचन से धरणेन्द्र और पद्मावती बने ।1 इस घटना की
1. (क) हस्तीमल मेवाड़ी, जैन आगम के अनमोल रत्न ।
(ख) कुशललाभकृत 'पार्श्वनाथ दशभव स्तवन' एल.डी. इन्स्टी. ग्रं. 975 ला.. (ग) कुशललाभकृत स्तम्भ पार्श्वनाथ स्तवनः आनंदकाव्य, महोदधि, मो. 7 (घ) हीरालाल कावडिया का लेख 'पदमावती देवी ते कोण'
—जैन, वर्ष 67, अंक 33-34, 29 अगस्त, 1970