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राजस्थानी जैन साहित्य
निर्देशानुसार आचार्य स्थूलिभद्र के पास पहुंचा और उनसे क्षमा याचना की। अपने दुष्कृत्य की निन्दा करते हुए प्रायश्चित कर उसने स्वयं को शुद्ध किया।
इसी आगम-प्रचलित कथा को मध्यकालीन विभिन्न जैन-कवियों एवं साधुओं ने ग्रहण कर अनेक सरस ग्रन्थों का प्रणयन किया। कुछ कवियों ने इस कथा पर प्रबन्ध रचे तो कुछ एक ने लघु फाग तो शेष ने फुटकर कवित्त ही ।इन सभी कवियों ने उक्त कथ्य को ज्यों-का त्यों ही ग्रहण नहीं किया अपितु अनेक ने उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर लिये। अधिकांश कवियों ने राजा नन्द के मंत्री शकडाल के पुत्र स्थूलिभद्र के वैराग्य को ही अपनी रचना की विषय वस्तु बनाया है। शकडाल वररुचि और रथिक का कथावृत्त का वर्णन दो तीन कृतियों में हुआ है। मध्यकाल तक (विशेषतः 18 वीं शताब्दी तक) रचित स्थूलिभद्र से सम्बन्धित निम्नलिखित कृतियां मिलती हैंक्र.सं. ग्रंथ का नाम रचयिता लिपिकर्ता र. का. लि. काल
(वि. सं.) (वि. सं.) । 1. स्थूलिभद्र कथा 2. स्थूलिभद्र फाग जिनपद्म सूरि - 1390 स्थूलिभद्र फाग हलराज
1409 4. स्थूलिभद्र बारमासा हीरानंद सूरि -- 1465 5. स्थूलिभद्र कवित्त सोमसुंदर सूरि - 1481 6. स्थूलिभद्र काक देपाल
1491 7. स्थूलिभद्र छंद मेरुनन्दन - 15वीं शती
1. कुमार पाल प्रतिबोध - सोमप्रभाचार्य,पृ. 443-461 2. रास एवं रासान्वयी काव्य - सं. दशरथ शर्मा एवं दशरथ ओझा, पृ. 138-143 3. स्वाध्याय - अंक 3, पुष्प 8 (श्री कनुभाई व्रजलाल शेठ का लेख - अद्यावत अप्रसिद्ध कवि
हलराजकृत स्थूलिभद्र फागु)। 4. गुर्जर कविओ, भाग 3 - मोहनलाल दलीचन्द देसाई, पृ.439 5. वही, पृ.438 6. स्थूलिभद्र काकादि-प्रकाशक राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर पृ. 1-6 7. सं. अगरचन्द भंवरलाल नाहटा · मणिधारी श्री जिनचन्द सूरि अष्ट्म शताब्दी स्मृति-ग्रंथ,
द्वितीय खण्ड पृ.61