Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 78
________________ स्थूलिभद्र-कथा और तत्सम्बन्धी राजस्थानी रचनाएं 67 विचलित नहीं होते । वे सदैव उसे काम-भोग के कटु फल का ही उपदेश देने लगते । इन उपदेशों से कोशा को उसके भोगासक्त जीवन के प्रति घृणा होने लगी। उसने (कोशा ने) महान् अनुताप करना आरम्भ किया । उसने मुनि से विनयपूर्वक क्षमा मांगी तथा सम्यकत्व और बारह व्रत अंगीकार कर श्राविका बन गई। उसने निर्णय कर लिया कि अब वह राजा के हुक्म से आए हुए पुरुष के अतिरिक्त अन्य किसी से शरीर-सम्बन्ध नहीं करेगी। चातुर्मास की समाप्ति पर मुनि स्थूलिभद्र ने वहां से विहार किया। तभी राजा ने कोशा के पास एक रथिक को भेजा जो बाण-संधान विद्या में बड़ा निपुण था। कोशा की चित्रशाला के गवाक्ष में बैठकर उसने अपने बाणों का संधान आरम्भ किया और उनके सहारे दूर के आम्रवृक्ष की फल सहित डालियों को तोड़-तोड़ कर कोशा के घर तक खींच लिया। कोशा ने भी सरसों के ढेर पर सुई की नोक पर खड़े होकर सुन्दर नृत्य प्रस्तुत किया, जिसे देखकर रथिक चकित हो गया और उसकी प्रशंसा करने लगा। तब कोशा ने कहा कि हम दोनों के ही कार्य अनोखे नहीं है। अनोखा कार्य तो स्थूलिभद्र की तप-साधना है जो इस चित्रशाला के प्रभाव से भी द्रवित नहीं हो सकी। वर्षाकाल की समाप्ति पर जब स्थूलिभद्र गुरु के पास लौटे तो उन्हें आते देख कर गुरु स्वागत के लिये उनके पास पहुंचे। स्थूलिभद्र के गुरु द्वारा किए जा रहे सत्कार को देखकर अन्य शिष्य ईर्ष्या की अग्नि में जल उठे। दूसरे वर्ष जब चातुर्मास आया तो इन्हीं में से एक शिष्य ने कोशा की चित्रशाला में चातुर्मास करने की अनुमति मांगी। गुरु ने उसे बहुत समझाया पर वह तनिक भी नहीं माना और कोशा के घर चला गया। प्रथम रात्रि को ही वह विचलित हो उठा और कोशा से भोग की इच्छा प्रकट करने लगा। कोशा ने उसके व्रत-भंग को बचाने के लिए नेपाल के राजा के पास जाकर रत्न-कंबल लाने को कहा। मुनि काम की पूर्ति के निमित्त मार्ग की कठिनाइयों को सहन करता हुआ भी रत्नजटित कम्बल लाया। आरम्भ में तो कोशा ने उसके साहस की सराहना की किन्तु दूसरे ही क्षण, उसने अपना रुख बदला, मुनि के प्रति अत्यन्त उपेक्षा दिखाते हुए उसने कम्बल से अपने गन्दे पैर पौंछ कर उसे गंदे पानी में डाल दिया। यह सब देखकर मुनि अत्यन्त क्रोधित हुए । तब कोशा ने उसे प्रतिबोधित किया कि काम-वासना की क्षणिक तृप्ति के लिये ब्रह्मचर्य का भंग क्या अनमोल ब्रह्मचर्य रत्न को गंदी नाली में डालना नहीं है। कोशा के इन शब्दों को सुनकर मुनि ने संयमव्रत ग्रहण किया। वह कोशा के

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