Book Title: Rajasthani Jain Sahitya
Author(s): Manmohanswarup Mathur
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 77
________________ 66 राजस्थानी जैन साहित्य स्वीकार कर लेने का आग्रह किया । पर उसने उसे अस्वीकृत करते हुए अपने बड़े भाई स्थूलिभद्र को जो 12 वर्षों से कोशा गणिका के पास रह रहा था को बुलवाकर मंत्री बनाने का आग्रह किया। राजा का आमन्त्रण प्राप्त कर जब स्थूलिभद्र राजसभा में पहुंचा तो उसे यह जानकर बड़ा दुःख हुआ कि उसके पिता वररुचि के षड़यंत्र के शिकार हो गये। वह पश्चाताप करने लगा कि वेश्या के प्रेम में पड़े रहने के कारण उसे पिता की मृत्यु का समाचार भी प्राप्त नहीं हो सका। अब वह इस संसार से उदासीन हो गया और मंत्री-पद की अपेक्षा साधु-धर्म स्वीकारना उसे उचित लगा। उसने संभूति विजय के पास पहुंचकर मुनित्व ग्रहण किया। वररुचि कोशा की छोटी बहन उपकोशा से प्रेम करता था । अतः श्रीयक भी अब वररुचि से बदला लेने की भावना से वहां जाने लगा। श्रीयक से अपने प्रियतम स्थूलीभद्र के संन्यास लेने एवं स्थूलिभद्र के पिता की हत्या का हाल सुनकर कोशा का हृदय संतप्त हो गया। ईर्ष्या एवं वियोग की अग्नि में प्रज्वलित होकर श्रीयक की राय के अनुसार उसने अपनी बहन उपकोशा को वररुचि को सुरापान करवाने की सलाह दी । उपकोशा के प्रगाढ़ अनुनय पर एक दिन वररुचि ने चंद्रप्रभा नामक सुरा का पान कर ही लिया। उसे इसका ऐसा चस्का लगा कि अब वह उसका पान सदैव करने लगा। एक दिन नंद श्रीयक के पास बैठा हुआ उसके पिता शकडाल की प्रशंसा कर रहा था। तभी श्रीयक ने राजा को बताया कि शराबी वररुचि ने निर्दोष शकडाल की हत्या करवा दी । वररूचि के शराबीपन की बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ और उसने इस बात की परीक्षा की, जिसमें उसका शराब पीना प्रमाणित हो गया। राजा ने उसे गर्म-गर्म गंधक जल पिलवा कर मरवा डाला। वर्षाकाल के आगमन पर शिष्यों ने विभिन्न स्थलों पर जाकर चातुर्मास करने की आज्ञा आचार्य संभूति से मांगी। आचार्य ने सभी शिष्यों को उनकी इच्छानुकूल स्थानों एवं विधि से चातुर्मास बिताने की आज्ञा दे दी । मुनि स्थूलिभद्र को भी उनकी अपेक्षानुसार उनकी पूर्व परिचिता सुन्दरी नायिका कोशा की चित्रशाला में षड्रस युक्त भोजन करते हुए चातुर्मास करने की आज्ञा मिल गई। __ मनिवेश में आए स्थूलिभद्र को देखकर कोशा बड़ी दुःखी हुई। पर चार माह तक साथ रहने की कल्पना ने उसे संतोष भी दिया, कोशा की साक्षात् कामदेव की मधुशाला के समान सुसज्जित चित्रशाला में स्थूलिभद्र ने अपना चातुर्मास आरम्भ किया। कोशा नाना चेष्टाओं से उनकी तपस्या भंग करना चाहती पर वह तनिक भी

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